SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- ११ ३२६ होने की सम्भावना अनैतिक व्यक्ति से भी कम हो जाती है। इसे समझ लेना जरूरी होगा। समाज की दृष्टि में वह आदृत होगा, साधु होगा, संन्यासी होगा लेकिन पाखण्डी हो जाने के बाद वह अनैतिक व्यक्ति से भी बुरी दशा में पड़ जाता है । क्योंकि अनैतिक व्यक्ति कम से कम सोधा है, सरल है, साफ है । उसके भीतर पाली उठती है तो गाली देता है और क्रोध उठता है तो क्रोष करता है । वह व्यादमी स्पष्ट है जैसा है वैसा है। उसके बाहर और भीतर में कोई फर्क नहीं है । परम ज्ञानी के भी बाहर और भीतर में फर्क नहीं होता । परम ज्ञानी जैसा भीतर होता है वैसा ही बाहर होता है । अज्ञानी भी जैसा बाहर होता है वैसा ही भीतर होता है । बीच में एक पाखण्डी व्यक्ति का मतलब है कि बाहर वह ज्ञानी जैसा होता है और भीतर अज्ञानी जैसा होता है । उसके भीतर गाली उठती है, क्रोध उठता है, हिंसा उठती है । मगर बाहर वह ज्ञानी जैसा होता है, अहिंसक होता है, "अहिंसा परमो धर्मः" की तख्ती लबाकर बैठता है, चरित्रवान् दिखाई पड़ता है, नियम पालन करता है, अनुशासनबद्ध होता है। बाहर का व्यक्तित्व वह ज्ञानी से उधार लेता है और भीतर का व्यक्तित्व वह अज्ञानी से उधार लेता है । यह पाखण्डी व्यक्ति, जिसको समाज नैतिक कहती है, कभी भी उस दिशा से उपलब्ध नहीं होगा जहाँ धर्म है । वर्षतिक व्यक्ति उपलब्ध हो भी सकता है। अक्सर ऐसा होता है कि पापी पहुँच जाते हैं और पुण्यात्मा भटक जाते हैं। क्योंकि पापी के दोहरे कारण है पहुँच जाने के । एक तो पाप दुखदायी है । उसकी पीड़ा है जो रूपान्तरण लाती है । दूसरी बात यह है कि पाप करने के लिए, समाज के विपरीत जाने के लिए भी साहस चाहिए । जो पाखण्डी लोग हैं वे मध्यम ( मीडियाकर) है। उनमें साहस नहीं है । साहस न होने की वजह से वे चेहरा वैसा बना लेते हैं लंसा समाज कहती है, समाज के डर के कारण । और भीतर पैसे रहे जाते है, जैसे वे हैं। अनैतिक व्यक्ति के पास एक साहस है जो कि वाध्यात्मिक गुण है और पाप की पीड़ा है। यह दो बातें हैं उसके पास । 'पाप उसे पोड़ा और दुख में ले जाएगा । दुख और पीड़ा में कोई व्यक्ति नहीं रहना चाहता। बीर साहस है उसके पास कि जिस दिन भी वह साहस कर से वह उस दिन बाहर हो जाए । मैं एक छोटी सी कहानी से समझाऊं । एक ईसाई पादरी एक स्कूल में बच्चों को समझा रहा है कि नैतिक साहस क्या होता है। एक बच्चा पूछता है कि उदाहरण से समझाइए । वह कहता है कि समझ लो कि तुम तीस बच्चे
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy