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________________ ३३० महावीर । मेरी दृष्टि में हो, तुम पिकनिक के लिए पहाड़ पर गए। दिन भर के थक गए हो, नींद मा रही है। सर्द रात है। उन्तीस बच्चे जल्दी से बिस्तर में कम्बल ओढ़कर सो जाते हैं । लेकिन एक बच्चा कोने में घुटने टेक कर परमात्मा की प्रार्थना करता है। पादरी कहता है कि उस लड़के में नैतिक साहस है । जब उन्तीस बिस्तर में सो गए हैं, सर्द रात है, दिन भर की थकान है जब कि प्रलोभन पूरा है कि 'मैं भी सो जाऊँ तब भी वह हिम्मत जुटाता है और कोने में भगवान की प्रार्थना करता है सर्द रात में । तब सोता है जब प्रार्थना पूरी कर लेता है। महीने भर बाद, वह पादरी वापिस आया है। उसने फिर नैतिक साहस पर कुछ. बातें की है और उसने कहा है कि अब मैं तुमसे समझना चाहूंगा कि नैतिक साहस क्या है । तो एक लड़के ने कहा है कि मैं-जैसा उदाहरण आपने दिया था वैसा ही उदाहरण देकर समझाता हूँ। तीस पादरी है। एक पहाड़ पर पिकनिक को गए हुए हैं। दिन भर के थके मांदे लौटते हैं, सर्द रात है। उन्तीस पादरी प्रार्थना करने बैठ जाते हैं। एक पादरी कम्बल ओढ़ कर सो जाता है तो जो आदमी कम्बल के भीतर सो जाता है, वह नैतिक साहस का उदाहरण है। और आपने जो उदाहरण दिया था उससे यह ज्यादा अच्छा है कि जब उन्तीस पादरी प्रार्थना कर रहे हों और कह रहे हों कि नरक जाओगे अगर तुम बिस्तर में सोवोगो तब एक आदमी चुपचाप बिस्तर में सो जाता है। नैतिक साहस होता हो नहीं उनमें जिन्हें हम नैतिक व्यक्ति कहते हैं । उनकी नैतिकता साहस की कमी के कारण होती है, साहस के कारण नहीं। एक आदमी चोरी नहीं करता । आम तौर से हम उसकी प्रशंसा करते है । मपर चोरी न करना ही अचोर होने का लक्षण नहीं है। चोरी न करने का कुल कारण इतना हो सकता है कि आदमी तो चोर है लेकिन चोरी करने का साहस नहीं जुटा पाता। सौ में निन्यानबे मौकों पर ऐसा होता है कि चोरी सब करना चाहते हैं ! लेकिन साहस नहीं जुटा पाते। चोरी करना साधारण साहस की बात नहीं है । अंधेरी रात में, दूसरे के घर में अपने घर जैसा व्यवहार करना बहुत मुश्किल बात है । तो जिनको हम नैतिक कहते हैं अक्सर वे पाहसहोन लोग होते हैं । और धर्म एक साहस की यात्रा है । साहसहीन लोग इसलिए नैतिक होते हैं कि उनमें साहस नहीं है। बुरे लोगों में एक गुण स्पष्ट है कि वे पूरे समाज के विरोध में साहसी है। जब उन्तीस कोग प्रार्थना कर रहे है तब वे सोने चले गए हैं । अब सवाल यह है कि उनका साहस पाप की बोर के हटकर पुण्य की और कैसे जाए? आपको ले जाने की बरत नहीं है। पाप,
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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