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________________ २९१ पीड़ा के है, बहुत सन्ताप है उनमें । बैसे जिन्दगो एकदम व्यर्थ हो गई हो, कुछ भी नहीं पा सके। रामकृष्ण ने ऐसा क्यों किया! अगर महावीर ने इसका प्रयोग नहीं किया तो रामकृष्ण ने क्यों किया ! कुछ कारण है। महावीर चाणी में समर्थ थे। रामकृष्ण वाणी में असमर्थ थे। और वाणी के लिए विवेकानन्द को साधन की तरह उपयोग करना जरूरी हो गया, नहीं तो रामकृष्ण ने जो जाना था वह खो जाता। रामकृष्ण ने जो जाना था। उसे जगत् तक पहुँचाने के लिए रामकृष्ण के पास वाणी नहीं थी। उस वाणी के लिए विवेकानन्द का उपयोग करना जरूरी था। विवेकानन्द सिर्फ रामकृष्ण के ध्वनि-विस्तारक यन्त्र हैं, इससे ज्यादा नहीं। और वह विल्कुल सम्मोहित अवस्था में सारे जगत् में घूम रहे हैं, बिल्कुल सोयो अवस्था में। रामकृष्ण जो बुलवाना चाह रहे हैं, वे बोल रहे हैं। विवेकानन्द का उपयोग किया गया है एक साधन को भांति । यह जरूरी था रामकृष्ण के लिए। नहीं तो रामकृष्ण किसी को कुछ भी न दे पाते । यही विवेकानन्द से कहा है रामकृष्ण ने "तुझे मैं समाधि में नहीं जाने दूंगा क्योंकि तुझे अभो एक बहुत बड़ा पाम करना है।" और जब भी विवेकानन्द ने उनसे पूछा “परमहंस देव, उस दिन जो खुशी मिली थी, प्रकाश मिला था, आनन्द मिला था, वह फिर कब मिलेगा।" तो उन्होंने बहुत जोर से उसे डांटा है, डाटा है, और कहा है कि तू बहुत लोभी है, स्वार्यो है, तू आने ही आनन्द के पोछे पड़ा है। तुझे मैं एक बड़ा वृक्ष बनाना चाहता हूँ जिसके नीचे बहुत लोग छाया में विश्राम करें। तुझे तो एक बड़ा काम करना है। वह कौन करेगा? तू समाधि में चला जाएगा तो वह कार्य कौन करेगा? महावोर को यह कठिनाई नहीं है। महावीर के पास रामकृष्ण के अनुभव भी हैं। विवेकानन्द को सामग्यं भी है। इसलिए दो व्यक्तियों की जरूरत नहीं पड़ती। एक ही व्यक्ति काकी है। अक्सर ऐसा हुआ है, जैसे गुरजिएफ को मैं बात करता है निरपर। गुरजिएफ ने आस्पैस्को का इसी तरह उपयोग किया है जैसा कि विवेकानन्द का रामकृष्ण ने। गुरजिएफ के पास वाणो नहीं है; आस्स्को के पास वाणो है, बुद्धि है, तक है । आस्पेस्की का पूरा उपयोग किया है गुजरिएफ ने । गुरजिएफ की आप किताब पढ़े तो समझ हो नहीं सकते है कुछ भी, क्योंकि उसके पास वह अभिव्यक्ति है ही नहीं लेकिन आस्स्को से उसने सब लिखवा लिया है जो उसे लिखवाना था। मास्स्को को किताबें इतनी अद्भुत हैं जिनका कोई 'हिसाब नहीं। गुरजिएफ को जो कहना या वह मास्स्को से कहलवा लिया है। और यह बिना सम्मोहन प्रयोग के नहीं हो सकता है। महावीर के पास भी वह
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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