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२९.
महावीर : मेरी दृष्टि में
विवेकानन्द का अपना नहीं है। वह भी सम्मोहन अवस्था में कहा गया है कि फलो दिन तुझे फिर होगा । लेकिन चाबी मेरे पास है तो फलां दिन वह फिर हो जाएगा।
में एक बच्चे पर सम्मोहन के बहुत से प्रयोग करता था। उससे मैंने कहा कि यह किताब सामने रखी है। इसके बारहवें पन्ने पर तुम पेंसिल उठा कर अपने दस्तखत कर देना । लेकिन आज नहीं, पन्द्रह दिन बाद ठीक ग्यारह बजे दोपहर ! और कर ही देना; भूल मत जाना। बात खत्म हो गई। वह तो होश में आ गया। स्कूल जाना था, स्कूल चला गया। पन्द्रह दिन बीत गए। किताब वहीं टेबिल पर पड़ी रही। लेकिन उसने कभी उस पर दस्तखत नहीं किए। पन्द्रहवें दिन उसका दस बजे स्कूल लगता था। उसने कहा : माज मेरा सिर कुछ भारी है। मैं स्कूल नहीं जाना चाहता हूँ। मैंने कहा : सुबह तो तबियत ठीक थी। उसने कहा : बिल्कुल ठोक थी पर अभी मेरा सिर भारी है। मैंने कहा : तुम्हारी मर्जी। मैं उसी कमरे में बैठा हूँ और टेबिल पर किताब रखी है, वह लड़का भी वहीं लेटा हुआ है। ठीक ग्यारह बजे उठा है, पेन्सिल उठाई है जाकर । जो पन्ना मैंने कहा था उसने खोला है और अपने दस्तखत करने लगा है। मैंने उसको दस्तखत करते वक्त पकड़ा है कि तू यह क्या कर रहा है। उसने कहा 'समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या कर रहा है। न तो मेरा सिर दुख रहा है और न कुछ और। लेकिन मुबह से ऐसा लग रहा है कि आज स्कूल मत जाना; कोई जरूरी काम करना है। बस भीतर से यही चल रहा है। और जब मैंने दस्तखत कर दिए हैं तो मेरे भीतर से बोझ उत्तर मया है जैसे मेरा पहाड़ उतर गया हो। मेरा सिर बिल्कुल ठीक हो गया है। दस्तखत करके मैं बिल्कुल हल्का हो गया है। पता नहीं यह क्यों हुआ है कि दस्तखत मुझे करने हैं। यह पन्द्रह दिन पहले दिया गया संमोहन प्रयोग है। ___ रामकृष्ण ने जिस विधि का उपयोग किया है उस विधि को महावीर ने बहुत दूर तक विकसित किया है लेकिन छोड़ दिया, उसका प्रयोग नहीं किया और मैं यह जानता हूँ कि विवेकानन्द को नुकसान पहुंचा। विवेकानन्द कुछ भी अपना काम नहीं कर सका। अपनी कमाई अभी बाकी रह गई है। यह हमा है दूसरे के द्वारा । इसमें विवेकानन्द की अपनी कोई उपलब्धि नहीं हैं। इसलिए विवेकानन्द बहुत चिन्तित, दुखित और परेशान रहे क्योंकि वे रामकृष्ण से बंधे थे। आखिरी समय में जो पत्र लिखे हैं उन्होंने, वे बड़े दुःख के हैं, बड़ी