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________________ २८९ एकपात मुश्किल से समझाई जा सकती है। इधर दो मिनट बेहोश किया पाए तो यह बात उसमें प्रवेश कराई जा सकती है। लेकिन मैं भी इस नतीजे पर पहुँचा कि उस व्यक्ति में कुछ बुनियादी नुकसान पहुंच जाते है । सन्देश पहुँच जाएगा लेकिन वह व्यक्ति ऐसे जीने लगेगा जैसे उसकी कोई स्वतन्त्रता नहीं रही; वह परवश है, कोई और उसे चला रहा है, ऐसा चलने लगेगा। रामकृष्ण ने विवेकानन्द को जो पहला संदेश दिया वह सम्मोहन की विधि से दिया गया था जिसमें उनके स्पर्शमात्र से विवेकानन्द को समाधि हो गई। वह सम्मोहन के द्वारा दिया गया संदेश है और इसीलिए विवेकानन्द सदा के लिए रामकृष्ण का अनुगत हो गया । और भी मजे की बात है कि रामकृष्ण ने जिस दिन स्पर्श द्वारा विवेकानन्द को संदेश दिया उसी दिन से विवेकानन्द के भीतर एक शक्ति प्रकट हुई जो उसको अपनी नहीं थी, किसी दूसरे के दबाव में उसके भीतर आ गई थी। कमरे में बैठे हुए हैं विवेकानन्द । और उस कमरे में एक भक्त भी रहता था। गोपाल बाबू उसका नाम था। वह सब तरह की भगवान् की मूर्तियां रखे हुए था अपने कमरे में और दिन भर पूजा चलती थी क्योंकि इतने भगवान् थे कि उनकी उसे रोज दो तीन घंटे पूजा करनी पड़ती थी। वह कभी सांझ को भोजन कर पाता, कभी रात में । इतने भगवान् और एक भक्त ! बड़ी मुश्किल हो गई थी। विवेकानन्द ने कई बार उससे कहा तू क्या पत्थर इकट्ठे कर रहा है। जिस दिन विवेकानन्द को पहली बार रामकृष्ण से सम्मोहन का सन्देश मिला उस दिन वह कमरे में जाकर बैठे और उन्हें एकदम से ख्याल आया कि इस वक्त अगर मैं गोपाल बाबू को कहूँ कि 'जा' ! सारी मूतियों को बांध कर गंगा में फेंक आ तो बराबर हो जाएगा।" इस वक्त उनके पास बड़ी तीव्र शक्ति है जिसको वह विस्तीर्ण कर सकते हैं। उन्होंने यह कहा सिर्फ मजाक में कि 'गोपाल बाबू ! सब भगवानों को बांधो और गंगा में फेंक आओ।' गोपाल बाबू ने सब भगवान् चद्दर में बांधे और गंगा में फेंकने चले । रामकृष्ण घाट पर मिले और कहा, 'खूब' ! गोपाल बाबू को कहा : 'वापस चलो' ! जाकर विवेकानन्द का दरवाजा खोला और कहा कि 'तेरो चाबी मैं अपने हाथ में रखे लेता हूं क्योंकि तू तो कुछ भी उपद्रव कर सकता है। और जो तुझे आज अनुभव हुआ है अब वह तेरे मरने के तीन दिन पहले ही तुझे हो सकेगा, उसके पहले नहीं ।' और विवेकानन्द को जो समाधि का अनुभव हुवा रामकृष्ण के स्पर्श से फिर जिन्दगी भर तडंप रही, वह कभी नहीं हो सका। लेकिन मरने के तीन दिन पहले वह फिर अनुभव हवा। वह भी १६
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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