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महावीर : मेरी दृष्टि में
अनुभूति को उस चक्र के माध्यम से प्रकट करना हो तो उसे खोलने की जरूरत पड़ती है। तिम्बत ने इस दिशा में सर्वाधिक मेहनत की है, तीसरी बाँस के सम्बन्ध में। तोड़ने के लिए अथक श्रम किया है । और तिब्बत में निरन्तर ऐसे लोग पैदा होते रहे जिन्होंने उसका पूरा उपयोग किया । मामाचक के माध्यम से ही देवताओं से जुड़ा जा सकता है। वहाँ वाणी को कोई जरूरत नहीं रहती। भाव जो भीतर पैदा हो वह आज्ञाचक्र से प्रतिध्वनित हो जाता है और देव-चेतना तक प्रवेश कर जाता है। . __ यह मैंने वो बातें कहीं। जड़ सम्बन्धित होना हो तो चेतना इतनी शिथिल हो जानी चाहिए कि जड़ के साथ तादात्म्य स्थापित हो जाए और मनुष्य से ऊपर की योनियों से सम्बन्धित होना हो तो चेतना इतनी एकाग्र होनी चाहिए कि आज्ञाचक्र टूट जाए। सर्वाधिक कठिनाई मनुष्य के साथ है। मनुष्य से सम्बन्धित होने के लिए महावीर ने तीन प्रयोग किए हैं। पहला प्रयोग यह है कि किसी भी मनुष्य को सम्मोहन की हालत में कोई भी सन्देश दिया जा सकता है । और उस वक्त सन्देश उसके प्राणों के आखिरी कोर तक सुना जाता है। और इस वक्त चूंकि तर्क बिल्कुल काम नहीं करता, विचार काम नहीं करता, चेतना काम नहीं करती इसलिए न वह विरोष करता है, न विचार करता है। जो कहा जाता है उसे चुपचाप स्वीकार कर लेता है यहां तक कि अगर एक व्यक्ति को बेहोश करके कहा जाए कि तुम घोड़े हो गए हो तो वह बराबर . चारों हाथ-पैर से खड़ा हो जाएगा, घोड़े की तरह आवाज करने लगेगा; वह यह मान लेगा। उसके बिल्कुल बचेतन तक अगर यह बात प्रविष्ट हो जाए तो हम जो उसे कहेंगे, वह बही हो जाएगा। उसे कहा जाए कि तुम्हें ककवा लग गया है तो उसके शरीर को एकदम लकवा लग जाएगा। फिर वह हाथ पैर हिला नहीं सकेगा । सौ में से तीस पुरुष, पचास स्त्रियों और पचहत्तर बच्चे सम्मोहित हो सकते हैं। जितना सरल चित्त हो उतनी शीघ्रता से सम्मोहन प्रवेश कर जाता है।
महावीर वर्षों तक काम कर रहे हैं कि सम्मोहन के द्वारा कैसे संदेश पहुंचाया जाए। लेकिन अन्ततः उन्होंने उस प्रक्रिया का प्रयोग नहीं किया है क्योंकि सम्मोहन के द्वारा सन्देश तो पहुँच जाता है लेकिन कुषसूक्ष्म नुकसान एतरे को पहुँच जाते हैं। वैसे उसको तर्क शक्ति क्षीण हो जाती है, जैस वह परवस हो जाता है और वह धीरे-धीरे दूसरे के हाप में जीने लगता है। मैंने भी इधर सम्मोहन पर बहुत प्रयोग किये है इसी दृष्टि से । क्योंकि घंटों मेहनत करें तब