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________________ प्रवचन-१ २८७ खाना, पीना, निद्रा आदि सारे काम त्याग करने पड़े। चोट सतत और सीधी होनी चाहिए। कोई भी बाधा बीच में नहीं होनी चाहिए । क्योंकि जब कोई दूसरी बात बीच में आएगो ध्यान वहाँ जाएगा। और ध्यान दूसरी जगह गया कि वहाँ से जो काम हुआ था वह अधूरा छूट जाएगा। वह अधूरा न छूट जाए इसलिए जीवन के सारे कामों से-जो बीच में बाधाएं डाल सकते है-ध्यान हटाना पड़ेगा। तभी एक केन्द्र को पूरी तरह से सक्रिय किया जा सकता है । तो महावीर निरन्तर एकान्त में खड़े हैं, और यह ध्यान रहे कि महावोर का भी साधना का अधिकतम हिस्सा खड़े-खड़े व्यतीत हुआ है। दूसरे सापकों ने बैठकर साधना को है। महावीर की अधिकतम तापना बड़े-बड़े हुई है। महावीर के ध्यान का प्रयोग भी खड़े-खड़े करने के लिए है। कुछ कारण है उसमें । बैठा हुआ आदमी, लेटा हुआ आदमी सो सकता है। और अगर एक पण को भी वहाँ से ध्यान हट जाए तो पहला काम एकदम विलीन हो जाएगा। उस चक्र पर तो सतत काम करना चाहिए। वह काम खड़े होकर ही किया जा सकता है क्योंकि खड़े हुए आदमी की सोने की सम्भावना एकदम न्यून हो जाती है, क्षीण हो जाती है। निद्रा से बचने के कई उपाय किए उन्होंने । और कोई कारण नहीं। सिर्फ कारण है कि निद्रा में उतनी देर के लिए प्यान अलन हो जाएगा और तब हो सकता है कि उतना काम व्यर्थ हो जाए। निद्रा से बचने के लिए भोजन को छोड़ देना चाहिए क्योंकि नोंद का पचहत्तर प्रतिशत भोजन से सम्बन्धित है। जैसे ही भोजन पेट में गया, मस्तिष्क की सारी शक्ति पेट की तरफ आनी शुरू हो जाती है, भोजन को पचाने के लिए । इसलिए भोजन करने के बाद नींद का हमला शुरू हो जाता है कारण कि मस्तिष्क में जो शक्ति काम कर रही है उसे पहले जरूरी है भोजन पचाना। क्योंकि ज्यादा देर वह बिना पचा रह जाए तो वह जहर हो जाएगा, ठंडा हो जाएगा । इसलिए पेट सारे शरीर से एकदम सारी शक्ति को वापस बुला लेता है और मस्तिष्क को शक्ति उतर जाती है नीचे। आंखें सपकने लगती हैं, नींद माने लगती है। अगर नींव को बिल्कुल ही तोड़ना हो तो पेट में कुछ नहीं होना चाहिए। इसलिए उपवास के दिन आपको नींद आना मुश्किल है। क्योंकि उस शक्ति को नीचे आने का कोई उपाय ही नहीं रह जाता। . ___ और जो लोग माझाचक्र पर काम कर रहे हैं, वहां ध्यान लगा है उनकी शक्ति नीचे नहीं आनी चाहिए । वह ऊपर ही लंगी रहनी चाहिए तो ही वह चक्र खुल सकता है। सत्य की अनुमति से बह चक्र नहीं खुल पाता । हाँ, उस
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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