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________________ २८६ महावीर : मेरी दृष्टि में ध्यान सक्रियता का सूत्र है। शरीर में किन्हीं भी केन्द्रों पर ध्यान जाने से वे केन्द्र सक्रिय हो जाते हैं। जैसे एक ही ख्याल हमें है सैक्स के सेन्टर का, जिसका लोगों को अनुभव है। कभी आपने स्याल किया कि जैसे ही आपका ध्यान सैक्स की तरफ जाएगा, सैक्स केन्द्र तत्काल सक्रिय हो जाएगा। जागते में ही नहीं, सोते में भी, स्वप्न में भी अगर सैक्स को तरफ ख्याल गया तो सैक्स केन्द्र फौरन सक्रिय हो जाएगा। सिर्फ ध्यान जाने से ही, सिर्फ जरा सी कल्पना उठने से ही सैक्स, वासना का केन्द्र सक्रिय हो जाएगा। एक केन्द्र का हमें सामान्य ख्याल है, इसलिए मैं उदाहरण के लिए कहता हूँ। दूसरे केन्द्र का हमें सामान्यतः बोष नहीं है। फिर भी एक-दो केन्द्रों का थोड़ा-थोड़ा हमें बोष है । ऐसा कोई आदमी नहीं मिलेगा जो प्रेम को बात करते वक्त सिर पर हाथ रखे, मगर हृदय पर हाथ रखने वाला आदमी मिलेगा। स्त्रियाँ जब प्रेम की बात करेंगी तब उनका हाथ हृदय पर चला जाएगा। वह एक केन्द्र है जो प्रेम का ध्यान आते ही सक्रिय हो जाता है। लेकिन जैसे कोई चिन्तित है और विचार में सक्रिय है तब उसका हाथ सिर पर जा सकता है, माथे पर जा सकता है। क्योंकि चिन्तित व्यक्ति को जहाँ विचार सक्रिय होता है उसी केन्द्र के आस-पास बोष हो जाएगा। आज्ञाचक्र वह जगह है जिसे दूसरे लोग 'तीसरी आँख' (पर्ड आई ) कहते हैं। अगर सारा ध्यान वहां केन्द्रित हो जाए तब करीब-करीब भीतर एक आंख के बराबर का एक टुकड़ा बिल्कुल खुल जाता है। कोई ऊपर से खोजने जाएगा तो उसे पता नहीं चलेगा लेकिन भीतर अगर ध्यान केन्द्रित हो तो ध्यान में व्यक्ति को निरन्तर पता चलेगा कि कोई चीज वहां टूट रही है, कोई छेद वहाँ हो रहा है। और जिस दिन उसे लगता है कि छेद हो गया उसी दिन उसे वे चीजें, जिन्हें हम देव कहें, प्रेत कहें, उनसे उसके सीधे सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं, जो हमारे सम्बन्ध नहीं हैं। तो महावीर का बहुत समय जिसको हम साधनाकाल कह रहे हैं अभिव्यक्ति के माध्यम खोजने का, इस तरह के केन्द्रों को सक्रिय करने और तोड़ने के लिए व्यतीत हुआ। इस तरह के केन्द्रों को तोड़ने में जितना ज्यादा ध्यान बिना बाधा के दिया जा सके उतना उपयोगी है। क्योंकि मामला वहाँ ऐसा है कि अगर आप पांच चोटें करके छोड़कर चले गए तो दुबारा जब आप आएंगे तब तक पांच चोटें विलीन हो चुकी होंगी। यानी. मापको फिर 'अ'ब'. 'स' से शुरू करना होगा। यह वजह है कि महावीर को बहुत दिन तक के लिए
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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