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इसलिए उसके विचार शान्त हो गए थे और शन्द उसके मन में प्रतिध्वनित हो गए । उसने कहा 'सरस्वती।' मगर उसको पता नहीं कि यह कैसे आया। थोड़े से इसको प्रयोग करके देखिए । ___ आप रास्ते पर जा रहे हैं और सामने एक आदमी जा रहा है । आप दोनों आँखों की पलकें बन्द करके उसकी गर्दन पर देखते रहना थोड़ी देर, पीछे चलते रहना चुपचाप और देखते रहना। और फिर मन में जोर से कहना कि पीछे लौटकर देखो। सौ में निन्यानवे आदमी लौटकर पीछे देखेगा कि क्या बात है?
और उसे पता भी नहीं चलेगा कि उसने पीछे लोटकर क्यों देखा ? ठीक उसकी गर्दन पर अगर आपकी आंखें केन्द्रित हों तब कोई भी विचार एकदम से सम्प्रेषित हो जाता है उसके प्रति । लेकिन होना चाहिए आपके पास तीव्रता से सम्प्रेषण करने की क्षमता यानी अगर आप साथ में ऐसा कहें कि 'पता नहीं कि लोटकर देखेगा कि नहीं देखेमा' तो सब गड़बड़ हो जाएगा। क्योंकि साथ-साथ आपका सन्देह भी सम्प्रेषित हो जाएगा और वह भी आदमी को पहुंच जाएगा और फिर वे दोनों कट जाएंगे। वह आदमी सीधा चला जाएगा, लौटकर पीछे नहीं देखेगा।
• हमारे मस्तिष्क की सम्भावनाओं का हमें ठीक-ठीक बोध नहीं है । देवलोक से सम्बन्धित होने के लिए मस्तिष्क का एक विशेष हिस्सा है जो सक्रिय होना जरूरी है । सक्रिय होने से हम दूसरी दुनिया में प्रवेश कर गए । जैसे रात हम सपने में प्रवेश कर जाते हैं, सुबह जागकर फिर एक नई दुनिया शुरू हो जाती है, ठीक वैसे ही हम एक नई दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं। यह प्रवेश उतना तथ्य ही है जैसे कि आपने रेडियो खोला जो ध्वनियां चल रही थीं वे पकड़ाई जानी शुरू हो गई। कोई ऐसा नहीं है कि रेडियो खोलने के वक्त ध्वनियां मानी शुरू हो जाती है। ध्वनियाँ इस कमरे में पहले से ही दौड़ रही हैं, सिर्फ खोलने पर पकड़ी जाती हैं । देवता प्रतिक्षण उपस्थित है हो, केवल आपके मस्तिष्क की एक व्यवस्था खुल जाने पर वे पकड़े जाते हैं, देखे जाते हैं। यह निर्भर करता है कि मस्तिष्क का वह हिस्सा कैसे टूट जाए ? उसके लिए दो-तीन बातें ख्याल में रखनी चाहिएं।
एक बात कि अगर कोई व्यक्ति समग्र चेतना से, सारे शरीर को छोड़कर सिर्फ दोनों बांखों के बीच में बाज्ञाचक्र पर ध्यान को स्थिर करता रहे तो जहाँ हमारा ध्यान स्थिर होता है, वहीं सोए हुए केन्द्र तत्काल सक्रिय हो जाते हैं।