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________________ २७२ महावीर : मेरी दृष्टि में से सम्बन्ध स्थापित होना असम्भव है जैसे जरथुस्त्र । उससे कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं हो सकता क्योंकि उसने कोई उपाय नहीं छोड़ा है। उसकी अपनी समझ है । वह कहता है कि पुराने शिक्षक को क्यों फिक्र करनी। नए शिक्षक आते रहेंगे, तुम उनसे सम्बन्ध बनाना । जरथुस्त्र से क्या लेना-देना। उसकी अपनी समझ है। महावीर की अपनी समझ है, वह यह कि क्या फिक्र तुम्हें, मैं ही काम पड़ सकता हूँ, मेरा उपयोग किया जा सकता है। यह अपनी समझ की बात है । सम्बन्ध बिल्कुल स्थापित किए जा सकते हैं लेकिन जो शिक्षक उपाय छोड़ गया हो उसी से । प्रश्न : महावीर के बाद किसी को इस सांकेतिक भाषा (कोर वर्ग) का पता है? उत्तर : हां, पता है लेकिन यह पता नहीं कि यह काहे के लिए है और इसकी क्या विधि है। यानी जैसे मैं आपको लिखकर दे जाऊं, कुछ दिन तक उसका उपयोग होता रहे, शास्त्र न लिखे जाएं। मगर जब उपयोग छूट जाएगा या कुछ लोग खो जाएंगे जो जानते थे तब झगड़े चलेंगे। झगड़े तो पीछे चलते ही हैं क्योंकि फिर पूछना मुश्किल हो जाता है । प्रश्न : आज महावीर से सम्पर्क बनाने वाला कोई नहीं है ? उत्तर : नहीं, कोई नहीं है, मगर सम्पर्क आज भी हो सकता है। उनको परम्परा में कोई नहीं है लेकिन और लोगों ने सम्पर्क स्थापित किए हैं महावीर से । कुछ लोग निरन्तर श्रम कर रहे हैं। ब्लावटस्की ने करीब-करीब सभी शिक्षकों से सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश की है। उनमें महावीर भी एक शिक्षक हैं। ब्लावटस्की एक रूसी महिला है। थियोसॉफिकल सोसाइटी को जन्मदात्री है । और उसके साथ अल्काट ने भी सम्बन्ध स्थापित किए हैं, एनी बीसेंट ने भी। ये सब मर चुके हैं। थियोसॉफी में आज कोई ऐसा नहीं रहा है । वह स्रोत सूख गया है । लेकिन थियोसॉफिस्टों ने हजारों साल बड़ी मेहनत की और जो बड़े से बड़ा काम किया वह यह कि सारे पुराने शिक्षकों से सम्बन्ध स्थापित किया, ऐसे शिक्षकों से भी जिनकी कोई किताब भी नहीं बची थी। प्रत्येक शिक्षकों से सम्बन्ध स्थापित करने की अलग-अलग विधियां हैं। कुछ से सम्बन्ध स्थापित नहीं हो सकता है। या तो विधि ठीक नहीं है या करने
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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