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________________ प्रश्नोत्तर-वचन-- २७१ वह वाबीज संकेत हो गया। जैसे ही उसकी छाती पर रखा कि वह बेहोश हो गया। अब उसको सबके सामने बेहोश नहीं करना पड़ता, नहीं तो बेहोस करने में वक्त लगता है। बेहोश करने की शिक्षा पहले दे दो है। भोर ताबीज से एसोसिएशन जोड़ दिया है उसका। अब तावीज जब भी छाती पर रखने, वह बेहोश हो जाएगा। बेहोश होने से ही वह फैल गया सब में । अब वह वहीं से पढ़ सकता है आपके खीसे के नोट के नम्बर। क्योंकि चेतना बहुत फैली हुई है नीचे। इधर छोटे से चेहरे से दिखाई पड़ रही है, उधर पीछे फैलती चली गई है। अगर यहां से बेहोश कर दी जाय तो वह वहां पूरे से सम्बन्ध जोड़ लेगी। जैसा इस बेहोश के साथ ताबीज का सम्बन्ध जोड़ा गया है, ऐसा प्रत्येक शिक्षक जो पीछे भी उपयोगी होना चाहता है और जो उसके पीछे भी उसका सहयोग, मार्ग-दर्शन चाहेंगे वह उनके लिए व्यवस्थित सूत्र बोर माता है कि इन सूत्रों का प्रयोग करने से मैं पुनः उपस्थित हो जाऊंगा। दक्षिण में एक योगी था-ब्रह्मयोगी। अभी कुछ वर्ष पहले बंटन उससे माकर मिला। तो उसने अपना एक फोटो दिया बंटन को। उसने कहा : मैं आपको गुरु बना लेता हूँ लेकिन मैं तो लंदन चला जाऊंगा। उसने कहा इससे क्या फर्क पड़ता है। लंदन कोई बहुत दूर तो नहीं। तुम यह फोटो ले जायो । तुम इस भांति इस आसन में बैठकर, इस तरह इस फोटो को रखकर एक-दो मिनट एकाग्र होकर फोटो को देखना। और तुम्हें जो प्रश्न पूछना हो, पूछना । उत्तर तुम्हें आ जाएगा। बंटन बहुत हैरान हुआ कि यह कैसे होगा लेकिन वह सारी व्यवस्था की जा सकती है। उसने कुछ प्रश्न पूछे । उत्तर एकदम आ गया उसी ध्वनि में, उसी शब्दावली में जिसमें ब्रह्मयोगी बोलता है। उसने वह सब लिख रखा जब भी उसने जो जो पछा। पीछे आकर उसने ब्रह्मयोगी को पूछा कि मैंने एक दफा यह पूछा था, आपने क्या कहा था। तो जो उसने लिखा था उसने बताया कि मैंने यह कह दिया था। अब यह ऐसा उपाय है जिससे काल और क्षेत्र मिट जाते हैं, और सम्बन्ध हो जाता है। __जो लोग बिल्कुल खो गए है अनन्त में, वे ही पीछे उपाय छोड़ जाते हैं । सभी नहीं छोड़ जाते। वह उनकी मर्जी पर निर्भर है कि वे छोड़ें या न छोड़ें। कोई शिक्षक कुछ भी नहीं छोड़ जाते, कोई शिक्षक, कुछ छोड़ जाते हैं । महावीर निश्चित छोड़ गए है कि इस उपाय से सम्बन्ध स्थापित हो सकेगा। महावीर का कोई व्यक्तिस्व नहीं बनता लेकिन उस अनन्त से उत्तर मा जाता है । इसलिए मैंने कहा कि महावीर से अभी भी सम्बन्ध स्थापित हो सकता है। कुछ शिक्षकों
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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