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________________ २७० महावीर : मेरी दृष्टि में है।आप तो सीमित है। अगर माप सागर के तट पर भी जाएंगे तो भी चुल्ल भर पानी भर सकते हैं। लेकिन जो नदी सागर में खो गई है उसका पता लगाना मुश्किल है कि वह कहां खो गई है। गंगा गिर गई है सागर में । लेकिन गंगा का कण-कण मौजूद है सागर में। वह खो गई है सागर में, मिट नहीं गई। जो था वह तो अब भी है। सीमा को जगह असीम हो गया है। ऐसी कुछ विधि है कि सागर के तट पर जब आप बड़े होकर गंगा को पुकारे तो वे अरण जो अनन्त सागर में खो गए हैं उस तट पर इकट्ठे हो जाएंगे। आप चुल्लू भर गंगा ले सकते हैं सागर से । मैं उदाहरण के लिए कह रहा हूँ। यह पुकार है आपकी अणुओं को क्योंकि अणु कहीं खो नहीं गया है। वह सब सागर में मौजूद है। क्या कठिवाई है कि पुकार पर वे अणु आपके पास चले नाएं और गंगा का चुल्ल भर पानी आपको सागर से मिल जाए। कठिनाई नहीं है। इसी तरह चेतना के महासागर में महावीर जैसा व्यक्ति खो गया है। लेकिन खोने के पहले ऐसा प्रत्येक व्यक्ति कुछ ऐसे संकेत छोड़ जाता है जो कभी भी उस अनन्त के किनारे खड़े होकर पुकारे जाएँ तो उसके अणु आपको उत्तर देने के लिए समर्थ हो जाएंगे। इस सबको पूरी-पूरी अपनी टेकनीक है। जैसे आपने कभी रास्ते पर देखा होगा कि एक आदमी खेल दिखा रहा है। एक लड़के की छाती पर ताबीज रख दिया है, लड़का बेहोश हो गया है और वह पूछता है कि अब आपकी घड़ी में कितना बजा है ? लड़का बताता है । वह आपके नोट का नम्बर बताता है, वह आपका नाम बताता है, और फिर वह मदारी ताबीज बेचना शुरू कर देता है कि यह छ:-छ: आने के ताबीज है। और ताबीज की यह शक्ति है जो आप देख रहे हैं अपनी आंखों के सामने । भापको भी लगता है कि ताबीज की बड़ी भारी शक्ति है। छः आने देकर आप ताबीन खरीद लेते हैं। घर आते हैं। आप कुछ भी करिए, ताबीज से कुछ भी नहीं होगा। क्योंकि ताबीज की शक्ति ही न थी। मामला बिल्कुल दूसरा था। उस लड़के को बेहोश करके बहुत गहरी बेहोशी में कहा गया है कि जब भी यह ताबीज तेरी छाती पर रखेंगे तू बेहोश हो जाएगा। इसको कहते हैं पोस्ट हिपनाटिक सजेशन । अभी बेहोश है वह। अभी उसको कह रहे है : यह ताबीज पहचान ले ठीक से । आँख खोल ! वह बेहोश है। इतनी चौड़ाई का यह लाल रंग का ताबीज जब भी तेरी छाती पर हम रखेंगे तू तत्काल बेहोश हो जाएगा। ऐसा महीनों उसको बेहोश किया जाता है और वह ताबीज बता कर उसके मन में यह सुझाव बैठाया जाता है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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