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________________ 'प्रश्नोत्तर-प्रवचन २६५ तो कुछ और रास्ते खोजने पड़ेंगे। नई परिस्थिति में नए रास्ते खोजने पड़ेंगे । पुराने रास्ते काम नहीं देंगे । कहाँ थे ? एक लंगोटी उस वक्त हिन्दुस्तान में नग्नता बड़ी सरल बात थी। एक तो ऐसे ही आम आदमी अर्द्धनग्न था, एक लंगोटी लगाए हुए था । नग्नता में कुछ बहुत ज्यादा नहीं छोड़ना पड़ता था जैसा हम सोचते हैं अवसर । वह तो राजपुत्र थे इसलिए सब कपड़े थे । बाकी आदमी के पास कपड़े बहुत थी । आम आदमी भी लंगोटी उतार कर स्नान कर लेता था । नग्नता बड़ी सरल, एकदम सहज बात थी । उसमें कुछ असहज जैसा नहीं था कि कोई बात नई हो रही है । हिस्सा तो ज्ञान का था, परिस्थिति मौका देती थी । और ज्ञानवान् आदमी वह है, जो ठीक परिस्थिति के मौके का पूरा से पूरा, ज्यादा से ज्यादा उपयोग कर सके । वही ज्ञानवान् है, नहीं तो नासमझ है । यानी सिर्फ नंगे की जिद्द कर ले और सब काम में रुकावट पड़ जाए, कोई मतलब नहीं है उसका । काम के लिए कोई और रास्ते खोजने पड़ेंगे । प्रश्न : कल आपने कहा था कि महावीर पिछले जन्म में सिंह थे और उन्हें पिछले जन्म में अनुभूति हुई। तो क्या प्राणिमात्र को उस अवस्था की अनुभूति हो सकती है ? या उनको अनुभूति उनके मनुष्य जन्म में हुई ? उत्तर : हां, मैंने 'पिछले जन्म' जो कहा, सीधे उसका यह मतलब नहीं कि उसके पहले जन्म में । अनुभूति होना बहुत मुश्किल है दूसरे प्राणिजगत् में । हो सकता है किन्तु बहुत कठिन है । कठिन तो मनुष्य योनि में भी है; सम्भव तो दूसरी योनि में भी है । लेकिन अत्यधिक कठिन है, असम्भव के करीब है । मनुष्य योनि में असम्भव के करीब है । कभी ही किसी को हो पाती है। पिछले जन्मों से मेरा मतलब अतीत जन्मों से है । महावीर को सत्य का जो अनुभव हुआ है वह तो मनुष्य जन्म में ही हुआ होगा । लेकिन सम्भावना का निषेध नहीं है । आज तक ऐसा ज्ञात भी नहीं है कि कोई पशु योनि में मुक्त हुआ हो । लेकिन निषेध फिर भी नहीं है। यानी यह कभी हो सकता है । और यह जब हो सकेमा जब मनुष्य योनि बहुत विकसित हो जाए - इतनी ज्यादा कि मनुष्य योनि में मुक्ति बिल्कुल सरल हो जाए। तब सम्भव है कि जो अभी स्थिति मनुष्य योनि की है, वह पिछली निम्न योनियों की हो जाए। मेरा मतलब है कि अभी मनुष्ययोनि में ही असम्भव की स्थिति है । कभी करोड़ दो करोड़, अरब दो अरव, आदमियों में एक आदमी उस स्थिति को उपलब्ध होता है । कभी ऐसा बक्त जा सकता है, और आना चाहिए विकास के दौर में जबकि मनुष्य
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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