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________________ २५६ महावीर । मेरी दृष्टि में प्रश्न : ब्रह्मचर्य? उत्तर : नहीं, वह भी बेसिक नहीं है। अरब को लें। वहां औरतें चार पांच गुना ज्यादा है पुरुषों से । पुरुष एक है तो स्त्रियाँ छः है या पांच हैं। फिर भी वह लड़ाकू कबीला है, दिन-रात लड़ता है। पुरुष कट जाते हैं, स्त्रियां बच जाती है। समाज अनैतिक हुआ जा रहा है। क्योंकि जहाँ स्त्रियां पांच हो, पुरुष एक हो, वहाँ अगर मुहम्मद ब्रह्मचर्य का उपदेश दें तो वह मुल्क सड़ जाएगा बिल्कुल । मर हो जाएगा मुल्क क्योंकि ऐसी कठिनाई खड़ी हो गई कि चार स्त्रियों को पति ही नहीं मिल रहे हैं। और वे मजबूरी से व्यभिचार में उतर रही है। इन चार स्त्रियों के व्यभिचार में उतरने से पुरुष भी व्यभिचारी हो रहे हैं। इन चार स्त्रियों के लिए कोई व्यवस्था करनी जरूरी हैं; नहीं तो समाज बिल्कुल अनैतिक हो जाएगा । अगर महावीर भी वहाँ हों मुहम्मद की जगह, तो मैं मानता हूँ कि वह विवाह करेंगे। क्योंकि उस स्थिति में उसके सिवाय कोई नैतिक तथ्य नहीं हो सकता। मुहम्मद कहते हैं कि चार विवाह प्रत्येक के लिए धर्म है, नीति है। चार तो प्रत्येक करे ही ताकि कोई स्त्री बिना पति के न रह जाए और कोई स्त्रो बिना पति के पीड़ा न उठाए ? और बिना पति की स्त्री व्यभिचार को मजबूर न हो जाए; वह समाज को कुत्सित रोगों में न फेर दे। मुहम्मद इसके लिए उदाहरण बनते हैं। वह नी विवाह कर लेते हैं। प्रश्न : परित्र समाज से आएगा या सम्यक् दर्शन से ? उत्तर : परित्र आएगा सम्यक् दर्शन से लेकिन प्रकट होगा समाज में। सम्यक् दर्शन जिसको प्राप्त हुमा है, उसे दृष्टि प्राप्त हुई है करुणा की, प्रेम की, दया की। उस दृष्टि को प्रकट होने के लिए जैसा समाज है वैसे उपकरण खोजे गए। जैसे मुहम्मद के लिए यही करुणा है कि वह चार विवाह का इन्तजाम कर दे। और चार विवाह का इन्तजाम करता है, अगर वह नो विवाह खुद करके न बता सके तो चार का इन्तजाम करेगा कैसे ? मुहम्मद के लिए जो करुणा पूर्ण है, वह यही है। महावीर के लिए यह सवाल नहीं है। जिस युग में वह है, जहां वह है, वहां की यह परिस्थिति नहीं है। यह कल्पना में भी आना मुश्किल है महावीर को। मुहम्मद के लिए ब्रह्मचर्य की कल्पना बहुत मुश्किल है क्योंकि मुहम्मद अगर ब्रह्मचर्य की बात करें तो आप यह समझ लीजिए कि बरव मुल्क सदा के लिए नष्ट हो जाए, बुरी तरह नष्ट हो पाए ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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