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________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- ८ राज्य - इन सब पर निर्भर होगा क्योंकि जब मैं शुद्ध दर्शन में है तब न 'मैं' है, न कोई और है - सिर्फ दर्शन है । २५५ 1 काँच की खिड़की जो से जब मैं ज्ञान में आया तो 'दर्शन' और 'मैं' भी आया वापिस । और जब मैं चरित्र में आया तो समाज भी आया । चरित्र जो है वह समाज के साथ है । समाज को एक नीति है तो चरित्र में प्रकट होनी शुरू होगी। अगर दूसरी नीति है तो दूसरी तरह से प्रकट होनी शुरू होगी । उनमें कोई भी मिथ्या नहीं है क्योंकि लोक परिस्थिति सारी जगह अलग-अलग है । चरित्र मुझसे दूसरे का सम्बन्ध है । चरित्र में मैं अकेला नहीं हूँ, आप भी हैं । इसलिए चरित्र प्राथमिक नहीं है । वह सबसे आखिरी प्रतिध्वनि है दर्शन की । लेकिन, हो चरित्र में कुछ बातें प्रकट होंगी । उसको दर्शन होगा । वह कुछ बातें हमारे ख्याल में ले सकते हैं । लेकिन उनको बहुत बाँधकर मत लेना; बांध लेने से मुश्किल हो जाती है । क्योंकि वह किसी न किसी परिस्थिति में ही प्रकट होंगी। जैसे समझ लें कि सूरज की किरणें आ रही हैं और यह जो खिड़की लगी है, नीले कांच की है । और यह जो खिड़की लगी है, पीले काँच की है । तो पीले किरणें भीतर भेजेगी, वे पीली दिखाई पड़ेंगी, नीले कांच की किरणें नीली दिखाई पड़ेगी । अगर तुमने यह मान लिया कि सूरज नीले या पीले रंग का होता है तो तुम गलती में पड़ जाओगे। तुम इतना ही आवश्यक है कि जब सूरज निकला है वह अनेक रूपों में प्रकट होता है लेकिन प्रकाश होता है। तुम पीले और नीले में भी ताल-मेल बिठा पाओगे । महावीर में वह एक तरह से निकलता है क्योंकि महावीर का व्यक्तित्व एक तरह का है। बुद्ध में दूसरी तरह से निकलता है, क्राइस्ट में तीसरी तरह से निकलता है, कृष्ण में चौथे तरह से निकलता है । हजार तरह से वह निकलता है । यह सब कांच है - व्यक्तित्व । प्रकाश तो एक है । फिर इनसे निकलता है । फिर तुम देखने वालों के बीच जिस समाज में वह आदमी जी रहा है, वे देखने वाले भो सम्बन्धित हो जाते हैं । और सम्बन्ध तो तुमसे करना है उसे । प्रत्येक युग में नीति बदल जाती है, व्यवस्था बदल जाती है, राज्य बदल जाता है । मानना जो ज्यादा प्रश्न : क्या बेसिक मोरेलिटी जैसी कोई चीज है ? उत्तर : बिल्कुल नहीं है, बिल्कुल नहीं है । प्रथम : सत्य भी बेसिक मोरेलिटी नहीं है ? उत्तर : सत्य मोरेलिटी का हिस्सा ही नहीं है। सत्य तो अनुभूति का, दर्शन का हिस्सा है, चरित्र का नहीं ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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