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________________ २५० महावीर : मेरी दृष्टि में दिन भर काम उस तरफ लोग कहीं पड़े रहेंगे । छोड़ना जरूरी है वह । रुपया लेंगे हम पार कर देंगे । नहीं, अब में जाता नहीं । मेरा गाँव इसी तरफ. है । मैं नाव बांधकर अब घर जा रहा हूँ । अब रात हो गई। से थक गया हूँ । उन फकीरों को उस तरफ जाना जरूरी है। प्रतीक्षा करते होंगे, हेरान होंगे। इस तरफ घना जंगल है, वह फकीर एक रुपया निकालता है जो कहता है : कुछ रखना जरूरी है। एक देता है । नाव में दोनों सवार होकर उस तरफ पहुँच जाते हैं । वह फकीर कूदता है कि देखो मैंने कहा था कुछ जरूरी है। नहीं तो हम उसी पार रह गए होते । वह जो फकीर कहता था : कुछ भी रखना जरूरी नहीं कहता है कि तुम रखने की वजह से इस पार नहीं पहुँचे सके, इसलिए पार पहुँचे सिर्फ रखने से हो जाता है । बड़ी मुश्किल हो गई। था, विवाद जीत गए । उस पार नदी के फिर विवाद चलने बात का कोई अन्त नहीं हो सकता क्योंकि दूसरा फकीर यह इस पार आए ही इसलिए कि तुम एक रुपया छोड़ सके । पार आए । वह फकीर कहता है हम आते ही नहीं अगर एक न होता । और मेरा मानना यह है कि कोई तीसरे फकीर की जो कहे कि हां, हो तभी छोड़ा जा सकता है, न हो तो छोड़ा भी नहीं जा सकता । इसलिए मैं कहता है कि चीजें हों और तुममें सतत छोड़ने की सामर्थ्य हों। बस इतनी ही बात है । चोजें न हों, यह सवाल नहीं हैं। सवाल यह हैं कि तुम में सतत छोड़ने की सामर्थ्य हो । इस पार नहीं पहुँचे। जिसने एक रुपया दिया वहाँ जरूरत है तुम एक रुपया छोड़ फिर विवाद शुरू था उसने सोचा लगा है और इस कहता है कि हम छोड़ने से हम इस रुपया हमारे पास एक सम्राट् एक संन्यासी से बहुत प्रभावित था। संन्यासी नग्न पड़ा रहता था एक नीम वृक्ष के नीचे । उस सम्राट् पर असर बढ़ता गया और एक दिन उसने कहा : यहीं नहीं, मेरे पास इतने बड़े महल हैं, आप वहीं चलें । सोचा था उसने कि संन्यासी इन्कार करेगा कि महल में नहीं जा सकता, मैं अपरिग्रही हूँ । संन्यासी ने कहा : जैसी आपको मर्जी । वह डंडा उठाकर खड़ा हो गया । सम्राट् के मन में बड़ी मुश्किल हुई । सोचा था कि अपरिग्रही है, इन्कार करेगा । सम्राट् को बड़ी शंका आने लगी मन में, सन्देह आने लगा कि कुछ भूल हो गई मुझसे । आदमी, दिखता है कि महल की प्रतीक्षा ही कर रहा है। सिर्फ नीम के नीचे शायद इसीलिए पड़ा हो कि कोई महल में ले जाने वाला मिल जाए । इसलिए एक दफा इन्कार भी नहीं किया । यह कैसा अपरिग्रही है ? अपरिग्रही को सी कहना चाहिए : कभी नहीं जा सकता महल में । महल ? पाप है । वहाँ .
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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