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________________ २४८ महावीर : मेरी दृष्टि चलना मुश्किल है। और इसलिए अनुयायी खड़े हो जाते है। और अनुयायी कभी भी किसी बर्थ के नहीं होते। प्रश्न : जोधमापने माज तक कहा वह सब एक ही प्रश्न को विशेष रूप से जन्म देता है। वह प्रश्न है: क्या आप जो कुछ कह रहे हैं, वह जैन परिभाषा में सम्यक् दर्शन के नाम से कहा गया है और आप आन्तरिक विवेक और जागरूकता पर पूरा बल दे रहे हैं? पर एक सम्यक् चरित्र भी उसका अंग है और वह चरित्र बाह्य रूप में भी प्रकट होता है, चाहे वह आता दर्शन में से ही है, पर उसका स्वयं का स्वरूप कुछ बाह्य में भी होता है। जैसे माप अगर अपरिग्रह को लें तो एक असम्पत्ति का भाव उसका मूल है, मूळ का अभाव उसका मूल है। पर बाह्य में वह, बाह्य पदार्थों की सीमा बंधती चली जाए, इस रूप में प्रकट होना ही चाहिए । ऐसी जैन दर्शन की मुझे भावना लगती है। इसी आधार पर तो अणुव्रत और महाव्रत का मेव हमा। माज मेरी मूळ टूट गई पर सब पदार्थ मुझसे आज ही छूट नहीं नाते अचानक, क्योंकि मेरी मावश्यकताएँ धीरे-धीरे हो छूटने वाली हैं। वही मान माचरण के रूप में अणुव्रत से प्रारम्भ होगा, कल महावत में समाप्त होगा। प्राण मगर यह भेद ही न मानें, केवल मूर्धा टूटना हो अगर पहरण कर लें तो अणुवत महाव्रत का कोई भेव, कोई कम नहीं रहेगा। और चारित्र नहीं केवल दर्शन ही रह जाएगा? उत्तर : इसमें भी दो तीन बातें समझनी चाहिए। एक तो अणुव्रत से कोई कभी महावत तक नहीं जाता। महावत की उपलब्धि से अनेक अणवत पैदा होते हैं। प्रश्न : (दोनों शब्दों का अर्थ ) ? उत्तर : हाँ, मैं बताता हूँ। महाव्रत का अर्थ है जैसे पूर्ण अहिंसा। पूरे अहिंसक ढंग से जीने का अर्थ है महाव्रत-पूर्ण अपरिग्रह, पूर्ण अनासक्ति । अणुव्रत का मतलब है जितनी सामर्थ्य हो । एक आदमो कहता है कि मैं पांच रुपये का परिग्रह रतूंगा। वह अणुव्रत है। एक आदमी कहता है : मैं नग्न रहूंगा। यह महावत है । साधारणतः ऐसा समझा जाता है कि अणुव्रत से महावत की यात्रा होती है कि पहले पांच रुपए का रखो, फिर चार का, फिर सीन का, फिर वो का, फिर एक का । फिर बिल्कुल मत रखो । साधारणतः ऐसा समझा जाता है। हम छोटे से छोटे का अभ्यास करते-करते बड़े की तरफ जाएंगे
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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