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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन २४३ देता है । तर्क का मतलब है कि सचाई पैदा हो। महावीर कहते हैं : 'अ' 'अ' भी हो सकता है, 'म' 'ब' भी हो सकता है। यह भी हो सकता है कि 'अ' भी न हो, 'ब' भी न हो। और 'अ' अनिर्वचनोय है। महावीर कहते हैं 'स्त्री' स्त्री भी है, 'पुरुष' भी है। 'पुरुष' 'पुरुष' भो है, 'स्त्रो' भी है। पुरुष 'स्त्री भी हो सकती है। स्त्री पुरुष भो हो सकता है और अनिर्वचनीय भी है। हो भी सकते हैं, नही भी हो सकते हैं। इस तर्क को समझना बहुत मुश्किल मामला है। लेकिन सच महावीर ही है। __जिन्दगी इतनी सरल नहीं जैसा अरस्तू समझता है। जिन्दगी में न कोई चोज काली है, न सफेद । काले और सफेद का भेद काफो नहीं है। कोई स्थान ऐसा नहीं है जो बिल्कुल अंधेरा है। और कोई स्थान ऐसा नहीं है जो बिल्कुल प्रकाशित है। असल में गहरे प्रकाश में भी अंधकार को मौजूदगी है और अंधकार से अंधकार जगह में भी प्रकाश की मौजूदगो है। ठोक तोड़ा नहीं जा सकता। जिन्दगो बिल्कुल घुलो-मिलो है। कोन-सो चीज ऐसी है जो बिल्कुल ठंडी है और गरम नहीं है । और कौन सी चोज ऐसो है जो बिल्कुल गरम है और ठंडी नहीं है । बिल्कुल सापेक्ष बातें हैं । ऐसा कुछ भी नहीं है साफ टूटा हुआ। तो महावीर कहते हैं कि जिन्दगो बिल्कुल जुड़ी हुई है-कदम जुड़ी हुई है। एक पैर जिन्दगी है और दूसरा पैर मौत है और दोनों साथ-साय चल रहे हैं। ऐसा नहीं है कि एक आदमो जिन्दा है और एक आदमी मरा है। मरना और जोना बिल्कुल साथ-साथ चलता है। अंधेरा और प्रकाश बिल्कुल एक ही चीज के हिस्से हैं । अरस्तू के तर्क से गणित निकलता है क्योंकि गणित सफाई चाहता है कि दा-दो चार होने चाहिए। महाबोर के गणित से दो-दो चार नहीं होते, कभी पांच भी हो सकते हैं, कभी तीन भो हो सकते हैं । ऐसा पक्का नहीं कि दो-दो चार ही होंगे। जिन्दगो इतनो तरल है, इतनो ठोस नहीं है। ऐसो मुर्दा भी नहीं है तो वहीं दो-दो कभी पांच भी हो जाते हैं, कभी दो और दो तोन भी रह जाते हैं। तो महावीर के तर्क से निकलता है रहस्य । और अरस्तू के तकं से निकलती है गणित। क्योंकि रहस्य का मतलब यह है कि जहाँ हम साफ-साफ न बांट सकें कि ऐसा है। महावीर को इस गहरी दृष्टि में उतरने के लिए केवल उसो के घर में जन्म लेना बिल्कुल ही व्यर्थ है। उससे कोई मतलब हो नहीं जुड़ता है। इसनो गहरी दृष्टि के लिए तो इतनी गहरो दृष्टि में सरने को हो जरूरत है। कोई उतरे ता हो स्थाल में आ सके। महाबोर के पोछे वा वर्ग खड़ा हुआ है, महाबोर के सोधे सम्पर्क में जो लोग आए थे, वे लोग महावीर से प्रभावित हुए होंगे। बब उनके बच्चों
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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