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________________ २४२ महावीर : मेरी दृष्टि में 1 लिए 'जैन' जैसे कोई चीज नहीं है दुनिया में । वह महावीर के साथ ही खत्म हो गई । जन्म से कोई सम्बन्ध नहीं है । इसलिए इस समय पृथ्वी पर 'जैन' जैसी कोई जाति नहीं है । वे जो सब जन्म से जैन लोग हैं इनको कुछ पता ही नहीं है और बड़े मजे की बात यह है कि यह जो जन्म से जैन लोग हैं, करते हैं जो महावीर सुन लें तो बहुत हंसे। इनके दावे सब महावीर के उल्टे हैं क्योंकि यह कहेंगे कि महावीर तीर्थंकर हैं। कहेगा : 'स्यात् हो भी सकता है, स्यात् नहीं भी हो सकता है ।' ये ऐसे दावे ऐसे हैं कि जो खुद महावीर प्रश्न : स्यात् क्या हर वर्ष में होगा ? सकता है क्योंकि स्वयं होना ही उत्तर : हाँ, हर धर्म में है। जैनों में बहुत ज्यादा । लेकिन बात इतनी जटिल है कि उसे सिर्फ जन्म से ही नहीं पकड़ा जा सकता किसी भी हालत में । जैसे मैं यह मानता हूँ कि एक आदमी जन्म से मुसलमान हो बात बहुत सरल है, बहुत गहरी नहीं है । जन्म से कोई सूफी क्योंकि बात बहुत बहरी है। सूफी मुसलमान फकीरों का ही जन्म से कोई सूफी नहीं हो सकता । सूफी होने के लिए तो पड़ेगा । कोई यह कहे कि 'मेरे बाप सूफी थे, इसलिए मैं सूफी हूँ' तो कोई नहीं मानेगा । मुसलमान हो सकता है। कोई दम नहीं है उसमें । जन्म से जैन होना बिल्कुल ही असम्भव है। कारण कि वह मामला हो सूफियों जैसा है । वह बिल्कुल साधन से उपलब्ध हो सकता है तो ही जैन बन सकते हो। यानी वह जीत न ले जब तक बनने का उपाय नहीं है कुछ और बात इतनी जटिल है जिसका कोई हिसाब नहीं है क्योंकि जीवन हो जटिल है । महावीर कहते हैं कि जीवन हो इतना जटिल है कि हम उसको सरल करें तो झूठ हो जाता है । जैसे कि अरस्तू का तर्क है । । जिन बन जाओ, 1 नहीं हो सकता हिस्सा है लेकिन दुनिया में दो ही तर्क हैं । एक अरस्तु का तर्क है, एक महावीर का । दुनिया में तीसरा तर्क नहीं है। दुनिया अरस्तु के तर्क को मानती है । महावीर के तर्क को कोई मानता नहीं क्योंकि अरस्तू का तर्क सीधा है, यद्यपि झूठ है । और अरस्तू का तर्क यह है कि अ अ है और 'अ' कभी 'ब' नहीं हो सकता । 'ब' 'ब' है । 'ब' कभी 'ग' नहीं हो सकता । यह अरस्तू कहता है । दुनिया अरस्तू के तर्क को मानती है। पुरुष पुरुष है, स्त्री स्त्री है। -सकता, स्त्री पुरुष नहीं हो सकती । 'काला' 'काला' है, 'सफेद' 'सफेद' है । 'सफेद' काला नहीं, 'काला' 'सफेद' नहीं । अंधेरा अंधेरा है, 'उजाला' उजाला है । ऐसा साफ है तर्क अरस्तू का । वह चीजों को तोड़कर अलग-अलग कर पुरुष स्त्री नहीं हो
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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