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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन दो बातें जुड़ी हैं ऐसा है, इससे अन्यथा भी है, इसलिए कोई दावा नहीं है । तब है वह अनिर्वचनीय पर फिर वे तीन 'भंगियों' को वापस दोहरा देते हैं। वह कहते हैं : है, और अनिर्वचनीय है । कोई चीज है और अनिर्वचनीय है। लेकिन ऐसा भी हो सकता है : कोई चीज नहीं है और अनिर्वचनीय है । जैसे शून्य शून्य है तो नहीं । शून्य का मतलब ही है, जो नहीं है। लेकिन, 'शून्य' अनिर्वचनीय है । 'न होते हुए भी' वह अव्याख्येय है । और सातवीं वह जोड़ते हैं : "है भी, नहीं भी है, और अनिर्वचनीय भी है ।' यानी इन सात कोणों से सत्य को देखा जाने पर इन सातों ही कोणों से जो व्यक्ति बिना किसी दृष्टि से बंधे, देखने में समर्थ है, वह पूरे सत्य को जानने में समर्थ हो जाएगा लेकिन बोलने में समर्थ नहीं होगा । भंगियों में बोलना पड़ेगा । ।' कि वह सात उत्तर देते हैं । क्या लेना देना है । हम तो हम चाहते हैं कि या कि 'ईश्वर है' । " पूरा सत्य जब भी बोला जाएगा तभी इन्हीं इसलिए महावीर से आप पूछते जाएं कि 'ईश्वर है तब आप चुपचाप घर चले आते हैं साफ उत्तर चाहते हैं, हम पूछने गए हैं कहे हैं, या कहे नहीं हैं, बात खत्म करे आप महावीर से पूछने जाते हैं । वह कहते हैं : " (१) स्यात् - है भी; (२) स्यात् - नहीं भी है; (३) स्यात् है भी, नहीं भी; (४) स्यात् अनिर्वचनीय है; (५) स्यात् है और अनिर्वचनीय है; (६) स्यात् नहीं है और अनिर्वचनीय है; (७) स्यात् है भी नहीं भी है और अनिर्वचनीय भी है ।" आप घर लौट आते हैं कि इस आदमी से कुछ लेना देना नहीं है क्योंकि इस आदमी से हम उतने ही उलझे लौटे जितने हम गए थे। क्योंकि इस आदमी से हम उत्तर लेने गए थे और इस आदमी ने उत्तर दिया है लेकिन इतना पूरा उत्तर देने की कोशिश की है कि कम बुद्धि को वह उत्तर पकड़ में नहीं आ सकता । इसलिए महावीर का अनुगमन नहीं बढ़ सका । महावीर के अनुयायी बढ़े ही नहीं । महावीर के जीवन काल में जो लोग महावीर के जीवन से प्रभावित हुए थे फिर उनकी सन्तति भले ही महावीर के पीछे चलती रही अन्धे की तरह, किन्तु नए लोग नहीं आ सके, क्योंकि महावीर जैसा व्यक्ति ही पैदा नहीं कर सकी वह परम्परा फिर, क्योंकि उसके लिए बड़ा मद्भुत व्यक्ति चाहिए जो इतने भिन्न कोणों से लोगों को आकर्षित कर सके। सीधी-सीधी बात से आकर्षित करना बहुत सरल है । इतनी जटिल बात से आकर्षित करना बहुत कठिन है । इसलिए महावीर के सीधे सम्पर्क में जो लोग आए थे, फिर उनके बच्चे हो पीछे लड़े होते चले गए। मगर जन्म से कोई धर्म का सम्बन्ध नहीं है इस१६ इस आदमी से २४१
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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