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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-६ वजह से ही उसने दूसरा रूप ले लिया था। जब मैं कह रहा हूँ कि अगर हम जाग जाएँ, और कर्ता मिट जाए, साक्षी रह जाए तो भी वस्तुओं का सत्य रहेगा। लेकिन तब वह वस्तु सत्य रह जाएगी। और मैं उसमें कुछ प्रक्षेप (प्रोजेक्ट ) नहीं करूंगा। और तब एक बहुत बड़ो दुनिया मिट जाएगी एकदम जिसको आप अपना बेटा कह रहे हैं, उसको आप अपना बेटा नहीं कहेंगे । अगर आप बिल्कुल 'साक्षी' हो गए तो आप सिर्फ पैसिव ( निष्क्रिय ) रह जाएंगे, एक द्वार रह जाएंगे जिससे वह व्यक्ति आया। लेकिन आप पिता नहीं रह जाएंगे। और बहुत गहरे में देखेंगे तो पता चलेगा कि आपने अपने शरीर का मैल छोड़ दिया है । इस मैल के आप पिता नहीं कहलाते और आप अपने वीर्य अणुओं के पिता कैसे हो सकते हैं। यह मैल भी शरीर में उसी तरह पैदा होता है जिस तरह वोर्य अणु पैदा होते हैं। यह नाखून आप काटकर फेंक देते हैं और यह बाल आप काटकर फेंक देते हैं, कभी नहीं कहते कि मैं इनका पिता है। कभी लौट कर भी नहीं देखते इन्हें । जिस शरीर ने ये सव पैदा किए हैं उसी शरीर ने वीर्य अणु भी पैदा किए हैं । आप कौन हैं ? आप कहां हैं ? यानी मैं यह कह रहा हूँ कि अगर आप ठीक से साक्षी हो जाएं तो कौन पिता है ? कौन बेटा है? क्या मेरा है ? यह सब एकदम बिदा हो जाएगा। और ये अगर सारे अन्तः सम्बन्ध एकदम बिदा हो जाएं तो जगत् बिल्कुल दूसरे अर्थों में प्रकट होगा । तब जगत् होगा, आप होंगे लेकिन बीच में कोई सम्बन्ध नहीं होगा। जो हम बांधते हैं, वह सब बिदा हो जाएगा। जब मैं यह कहता हूँ कि आप अगर जाग जाएंगे तो जगत् स्वप्नवत् हो जाएगा मेरा मतलब यह नहीं कि जगत् झूठा हो जाएगा। जगत् और अर्थों में रहेगा। जिन अर्थों में आज है, उन अर्थों में नहीं रह जाएगा। स्वप्न भी बचता है, वह कहीं खो नहीं जाता। उसको भी सार्थकता है। और आप हैरान होंगे कि थोड़ी भी चेष्टा करें तो एक ही स्वप्न में हजार बार प्रवेश कर सकते हैं। हमको क्यों स्वप्न मिथ्या मालूम पड़ता है ? उसका कारण है कि आप स्वप्न में दुबारा प्रवेश नहीं कर पाते । और एक ही मकान में दुबारा जग जाते हैं तो मकान सच्चा मालूम होने लगता है क्योंकि बार-बार इसी मकान में आप जगते हैं रोज सुबह । यहो मकान, यहो दूकान, यही मित्र, यही पत्नी, यही बेटातो यह वार-बार घूमता है। अगर हर बार सुबह आप जागें और मकान दूसरा हो जाए तो आपको मकान का सत्य भी उतना ही झूठा लगेगा जितना स्वप्न का । क्या भरोसा कि कल सुवह क्या हो जाए ? सपने में आप एक ही बार जा पाते १३
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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