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महावीर । मेरी दृष्टि में
हैं, दुबारा उस सपने को आप चालू नहीं कर पाते। क्योंकि आप जागने में ही अपने मालिक नहीं है, सोने की मालकियत तो बहुत दूर की बात है । आप सपने में कैसे जा सकते हैं ? लेकिन इस तरह की पद्धतियां और व्यवस्थाएं हैं कि एक ही स्वप्न में बार-बार जाया जा सकता है । तब आप हैरान रह जाएंगे कि स्वप्न इतना ही सत्य मालूम होगा जितना यह मकान । एक स्त्री आपकी पत्नी थी तो कल वह नहीं रह जाएगी । कल आप खोजें कितना भी तो भी पता नहीं चलेगा कि वह कहीं गई
क्योंकि आज स्वप्न में
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लेकिन अगर ऐसा हो और एक निश्चित स्त्री वर्ष तक चले तो आप कहेंगे जैसा दिन सच्चा
सके, और ऐसा हो सकता है कि रोज रात आप सोएं रोज रात सपने में आपकी पत्नी होने लगे, ऐसा दस ग्यारहवें वर्ष पर यह कह सकेंगे कि रात झूठ है ? आप है, वैसी रात भी सच्ची है । स्वप्न को स्थिर करने के भी उपाय हैं । उसी स्वप्न में रोज-रोज प्रवेश किया जा सकता है। तब वह सच्चा मालूम होने लगेगा। और अगर हम गौर से देखें तो रोज-रोज हम उसी मकान में सुबह जागते भी नहीं जिसमें हम कल सोए थे। क्योंकि मकान बुनियादी रूप से बदल जाता है । अगर हमारी दृष्टि उतनी भी गहरी हो जाए कि हम बदलाहट को देख सकें तो जिस पत्नी को आपने कल रात सोते वक्त छोड़ा था, सुबह आपको वही पत्नी उपलब्ध नहीं होती । उसका शरीर बदल गया, उसका मन बदल गया, उसकी चेतना बदल गई । उसका सब बदल गया । लेकिन उतनी 'सूक्ष्म दृष्टि भी नहीं है हमारी कि हम उतनी गहरी दृष्टि से जांच कर सकें कि सब बदल गया है, यह तो दूसरा व्यक्ति है । इसलिए आप कल की अपेक्षा करके झंझट में पड़ जाते हैं । कल वह बड़ी शान्त थी। बड़ी प्रसन्न थी । आज सुबह से वह नाराज हो गई । आप कहते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है । क्योंकि आप अपेक्षा कल की लिए बैठे हैं । कल उसने बहुत प्रेम किया था और आज बिल्कुल पीठ किए हुए है । आपको लगता है कि यह कुछ गड़बड़ हो रहा है । लेकिन आपको ख्याल नहीं है कि सब चीजें बदल गई हैं । जिस दिन हम बहुत गहरे में इधर घुस जाएँ यानी अगर गहरे स्वप्न में चले जाएं तो स्वप्न भी मालूम होगा वही है । और अगर गहरे सत्य में चले जाएँ तो पता चलेगा कि वही कहाँ है ? रोज बदलता चला जा रहा है ।
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मेरा कहने का प्रयोजन यह है कि इन सारी स्थितियों में, चाहे स्वप्न, चाहे 'जागरण, अगर 'साक्षी' जग जाए तो बिल्कुल ही एक नई चेतना का जागरण होता है। लेकिन उससे कोई मिथ्या जगत् हो जाता है ऐसा नहीं । उससे सिर्फ