________________
महावीर : मेरी दृष्टि में
तो मैं स्वप्न को असत्य नहीं कहता हूँ। फर्क इतना ही कर रहा हूँ कि स्वप्न में जो सत्य दिखाई पड़ता है, वह स्वप्न के सत्य होने से नहीं आता । वह हमारे कर्ता होने से आता है। और हमारा कर्त्तापन मिट जाए तो हमारे लिए स्वप्न मिट जाएगा, स्वप्न का सत्य तो बना ही रहेगा। अगर हमारा कर्तापन का भाव मिट जाए, अगर मैं नींद में जाग जाऊँ और मुझे ख्याल आ जाए कि यह स्वप्न है और मैं तो सिर्फ स्वप्न देख रहा हूँ तो एकदम विलीन हो जाएगा। इसका यह मतलब नहीं कि स्वप्न के सत्य नष्ट हो गए। स्वप्न के सत्य अपने बल पर बने रहेंगे।
कर्ताभाव से स्वप्न में सत्य प्रकट हुआ था। अब वह अप्रकट हो गया। ठोक ऐसे ही जागने में जो चीजें हमें दिखाई पड़ रही हैं वे हैं। उनकी अपनी सत्ता है । महावीर को भी निकलना हो, शंकर को भी निकलना हो तो दरवाजे से निकलेंगे, दीवाल से नहीं निकलेंगे। माया या स्वप्नवत् कहने का मतलब बहुत दूसरा है। वह यह है कि दीवाल यानी वस्तु का अपना एक सत्य है। लेकिन वह सत्य एक बात है और हम कर्ता होकर, मोहग्रस्त, अहंग्रस्त होकर उस पर और सत्य प्रोजेक्ट कर रहे हैं जो कहीं भी नहीं है। जैसे एक मकान है, उसका अपना सत्य है । लेकिन यह मकान मेरा है यह बिल्कुल हो सत्य नहीं है । 'यह मेरा', बिल्कुल मेरे प्रक्षेप (प्रोजैक्शन ) को बात है । मकान को पता भी नहीं होगा कि मैं किसका था और कई बार इसको भ्रान्तियां गहरी है । जैसे कि हम कहते हैं कि यह देह मेरी है। आपको ख्याल होना चाहिए कि इस देह में करोड़ों कीटाणु जी रहे हैं और वे समझ रहे हैं कि यह देह उनकी है।
और उनमें से किसी को पता नहीं कि आप भी इसमें हैं एक । आपका बिल्कुल पता नहीं । जब आपको कैंसर हो गया, घाव हो गया, नासुर हो गया और दस कोड़े उसमें पल रहे हैं तो आप सोच रहे हैं कि यह मेरी देह को खाए जा रहे है । कोड़ों को ख्याल भी नहीं हो सकता। कीड़ों को अपनी देह है, वह उसमें जी रहे हैं। जब आप उन्हें हटाते हैं, तो उनको स्वत्व से वंचित कर रहे हैं । आप समझ रहे हैं कि आपकी देह में कितने लोग देह बनाए हुए हैं। और वह अरबों, खरबों कीटाणु देह बनाए हुए हैं और सब यह मान रहे हैं कि उनको देह है । जब हम यह कह रहे हैं कि वस्तु को अपनी सत्ता है, इस देह को अपनी सत्ता है तो 'मेरा है', यह धारणा बिल्कुल स्वप्नवत् हो जाती है। जिस दिन भाप जागेंगे, देह रह जाएगी और अगर 'मेरा' न रह जाए तो 'देह' बहुत और अर्थों में प्रकट होगी, जिन अर्षों में वह कभी प्रकट नहीं हुई थी। 'मेरे' की