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________________ १८८ महावीर : मेरी दृष्टि में कहता है-कठोरता छोड़ो, दया पकड़ो; शोषण छोड़ो, दान पकड़ो; हिंसा छोड़ो, अहिंसा पकड़ो। नैतिक व्यक्ति कहता है कि जो बुरा है, उसे छोड़ो; जो अच्छा है उसे पकड़ो। लेकिन, वह यह भूल जाता है कि जिसे वह अच्छा कह रहा है, वह उसी बुरे को अत्यन्त छोटी, कम विकसित अवस्था है। वह उससे भिन्न और विरोधी नहीं है। लेकिन जैसे ही व्यक्ति वासना से निर्वासना के जगत् में प्रवेश करता है तो बीच की एक बफर स्टेज, जिसको कहना चाहिए दो अवस्थाओं के बीच का रिक्त स्थान, उसमें भी करुणा सेतु है। करुणा कठोरता का उल्टा नहीं है । करुणा और दया समानार्थक नहीं हैं । दया कठोरता को प्रहरी है इस फर्क को ठीक से समझ लेना उपयोगी होगा। जब मैं किसी व्यक्ति पर दया करता हूँ तब ध्यान में दूसरा व्यक्ति होता है जिस पर मैं दया कर रहा हूँ । भूखा है, दयायोग्य है । दया दूसरे को दोनता पर, दुख पर, दरिद्रता पर निर्भर करती है । दूसरा केन्द्र में होता है। और जब मैं कठोर होता हूँ तब भी दूसरा केन्द्र में होता है। यह दूसरा दुश्मन है, बुरा है; उसे मिटाना जरूरी है। दया और अदया-दोनों में दृष्टि बिन्दु दूसरे पर होती है । करुणा का दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं । दूसरा कैसा है, करुणा का इससे प्रयोजन नहीं। मैं कैसा हूँ, यह प्रयोजन है । मैं करुणापूर्ण हूँ। __ जैसे एक दिया जल रहा है और उससे रोशनी बरस रही है। पास से कोई निकलता है, इससे दिया रोशनी कम और ज्यादा नहीं करता। कोन पास से निकलता है-अच्छा या बुरा आदमी, दीन, दरिद्र, या धनवान्, हारा हुआ कि. जीता हुआ, दिया जलता रहता है। कोई नहीं निकलता तब भी जलता रहता है। क्योंकि दिए का जलना दूसरे पर निर्भर नहीं करता। दिए का जलना उसको अन्तर अवस्था है। एक भिखारी सड़क पर निकला तो आप दयापूर्ण हो गये। लेकिन अगर एक सम्राट् निकला तो फिर आप कैसे दयापूर्ण होंगे ? भिखारी निकला तो आप दयापूर्ण होंगे और सम्राद निकला तो आप दया की आकांक्षा करेंगे। क्योंकि दया दूसरे से बंधी थी, आप पर निर्भर नहीं थी। लेकिन महावीर जैसे व्यक्ति के पास से कोई निकले-दोन, भिखारी या सम्राटइससे कोई फर्क नहीं पड़ता। करुणा बरसती रहेगी, सम्राट् पर भी उतनी ही, भिखारी पर भी उतनी ही क्योंकि करुणा दूसरे पर निर्भर नहीं करती है। महावीर का दिया है जो जल रहा है, जिससे रोशनी बरस रही है। इसलिए करुणा को कोश शब्द में जो दया का पर्यायवाची बताया जाता है वह बुनियादी भूल है । एकदम भूल है। दया बात हो और है । दया कोई अच्छी चीज नहीं। हाँ, बुरी चीजों में अच्छी है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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