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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-६ १७७ मर्जी आती वे करते। कोई चलते चपत मार जाता, कोई बाल खींच जाता, कोई आकर कंधे पर बैठ जाता, कोई गोदी में बैठ जाता। चार महीने निरन्तर यही भगवान से प्रार्थना रही कि या तो जल्दी बाहर कर या फिर पागल कर दे। क्योंकि यह तो फिर बड़ा असुविधापूर्ण हो गया। पागलखाने में किसी आदमी के ठीक हो जाने की जो तकलीफ है, वही सोए हुए जगत् के बीच जागने की तकलीफ है। क्योंकि वह आदमी फिर सोए हुए आदमी के ढंग से व्यवहार नहीं कर सकता और सोया हुआ आदमी तो अपना ढंग जारी रखता है। तो महावीर जैसे लोग जिस कष्ट में पड़ जाते हैं, उस कष्ट का हम हिसाब नहीं लगा सकते क्योंकि हमें पता ही नहीं है कि वह कष्ट कैसा है? क्योंकि हम सोए हुए लोगों के बीच में एक आदमी जाग गया, उसकी भाषा बदल गई, उसकी चेतना बदल गई, वह एकदम अजनबो हो गया। __ अगर एक तिब्बती भारत में आ जाए या आप तिब्बत में चले जाएं तो जो अजनबोपन है वह सिर्फ भाषा के शब्दों का है, बहुत ऊपर का अजनबीपन है, भीतर आदमी एक जैसे हैं । क्रोध उसको आता है, क्रोध आपको आता है । घृणा उसको आती है, घृणा आपनो आती है। ईर्ष्या में वह जीता है, ईर्ष्या में आप जोते हैं। फर्क है तो इतना कि ईर्ष्या का शब्द आपका अलग है, उसका अलग। थोड़े दिनों में पहचान हो जाएगी और 'ईया' के शब्द मेल खा जाएंगे तब अजनबीपन मिट जाएगा। यानी साधारणतः पृथ्वी के अलग-अलग कोनों पर रहने वाले को हम अजनबोपन कहते हैं। लेकिन वह अजनबीपन वड़ा छोटा है. सिर्फ भाषा का है । आदमी-आदमी एक जैसे हैं। लेकिन जब कोई आदमी सोई हुई पृथ्वी पर जागा हुआ हो जाता है तो जो अजनबीपन शुरू होता है, उसका हिसाब लगाना मुश्किल है, क्योंकि अब भाषा का भेद नहीं, अब तो सारी चेतना का भेद पड़ गया है । सब आमूल बदल गया है। अगर हमें कोई गाली देता है तो हमारे भीतर क्रोध उठता है। उसे कोई गाली देता है तो उसके मोटर करुणा उठती है। इतनी चेतना का फर्क हो गया है क्योंकि उसे दिखाई पड़ता है कि एक मादमी बेचारा गाली देने की स्थिति में माया है, कितनी तकलीफ में होगा। और उसके भीतर से करुणा बहनी शुरू हो जाती है और हमारे लिए समझना आसान है-अगर आप मुझे गाली दें, और मैं भी आपको गाली दूं। तो, आपका मैं मित्र हूँ क्योंकि आपको दुनिया का ही निवासी हूँ। आप मुझे गाली दें और मैं आपको प्रेम करतो आप जितना क्रोध से भरेंगे मेरे प्रति उतना गाली देने वाले के प्रति शायद न भरें। १२
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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