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________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- ४ १२६ प्रश्न : जीवन के रहस्य को जानने के लिए, जीवन और मृत्यु से अभय प्राप्त करने के लिए बुद्ध ने इतनी साधना की थी। लेकिन वही बुद्ध, दलाई लामा के रूप में केवल अपने जीवन को बचाने के लिए ही चीनियों के चंगुल से भागकर यहाँ आता है। वही बुद्ध जिसने 'अभयो भव', 'उभयवीतो भव' कहा, वही बुद्ध दलाई लामा के रूप में, एक कायर के रूप में हमारे सामने आ जाता है। यह ऐसी चीजें हैं जिससे लगता है कि या वह बुद्ध झूठ मे या यह दलाई लामा जो चिन्ह रूप में आए हैं झूठ हैं । उत्तर : असल में, चीजें जैसी हमें दिखाई पड़ती हैं वैसी ही नहीं होतीं । दलाई लामा को समझना वहुत मुश्किल है क्योंकि जिस भाषा में हम सोचने के आटी हैं उस भाषा में निश्चय ही वह भागा अपने को बचाने के लिए। कायर मालूम पड़ता है । लड़ना था, जूझना था। भागना क्या था ? ऐसा ही हमें दिखाई पड़ता है, बिल्कुल सीधा और साफ । लेकिन मैं आपसे कहता है कि दलाई लामा के भागने में बहुत और अर्थ है । ऊपर से यही बिखाई पड़ता है कि दलाई भागा; बचाया अपने को-बड़ा कायर है। सचाई इतनी नहीं है । सचाई ऊपर से ही इतनी दिखाई पड़ रही है । दलाई लामा का भागना अत्यन्त करुणापूर्ण, महत्वपूर्ण है । दलाई अगर वहाँ लड़ता तो हमारी नजरों में वह बहुत बहादुर हो जाता। लेकिन दलाई लामा को कुछ और बचाकर लाना था जो हमें दिखाई ही नहीं पड़ रहा है, जो कि लड़ने में नष्ट हो सकता था । समझ एक मन्दिर है और एक पुजारी है। और यह पुजारी किन्हीं गहरी सम्पत्तियों का अधिकारी भी है जो उसके मरते ही एकदम खो जा सकती है इन अर्थों में कि उनसे सम्बन्ध का फिर कोई सूत्र नहीं रह जाएगा मोर जरूरी है कि इसके पहले कि वह मरे, वह बारे सूत्र और वह सारी सम्पत्तियों की खबर किन्हीं को दे दे । दलाई लामा के पास बहुत रहस्यमय सूत्र हैं जिन्हें इस समय जमीन पर मुश्किल से चार-पांच लोग समझ सके हैं। दलाई लामा का भाग आना अत्यन्त जरूरी था । तिब्बत का उतना मूल्य नहीं जितना मूल्य दलाई लामा को जान का है मोर जो वह किसी को दे सकता है उसका है । और, तिब्बत की हार निश्चित थी । तिब्बत का चीन में डूबना निश्चित था। यह भी दलाई लामा को दिखाई पड़ सकता है जो दूसरे को दिखाई नहीं पड़ सकता । और अगर ऐसा साफ दिखाई पड़ता हो तो लड़ना उचित नहीं है; चुपचाप हट जाना उचित है । उस सबको लेकर बचाना ज्यादा कीमती है । तिब्बत तो बचेगा नहीं और वह सब बच सकता 1
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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