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________________ १३० महावीर : मेरी दृष्टि में है भागने से । और आज वलाई बैठकर वह सारे प्रयोग कर रहा है दसपच्चीस लोगों को साथ लेकर, जिनके साथ वह भागकर आया है। कीमती लोगों को बह सारी सम्पदा दे रहा है । उसके मरने का कोई सवाल ही नहीं । वह तिब्बत में भी मर सकता था और यहाँ भी मरेगा। प्रश्न ही नहीं है । मरने से बचने का जो उनके पास सवाल था उसका अंकुरित हो सकते 1 बहुत बार ऐसा हुआ है। यह पहली बार नहीं हुआ हिन्दुस्तान में । बोद्ध भिक्षुओं को भागना पड़ा हिन्दुस्तान से । एक वक्त आया जब हिन्दुस्तान से बौद्ध भिक्षुओं को भागना पड़ा। भागना इसलिए जरूरी हो गया कि यहाँ भूमि बिल्कुल बंजर हो गई उनके लिए । उनको ग्रहण करने के लिए, था, कोई नहीं बच्चा । अपनी जान का सवाल न था; लेकिन जो वे जानते थे, जो बीज उनके पास थे, जो किसी भूमि में थे । उनको भावकर सारी एशिया में खोज करनी पड़ी कि कहीं और हो सकता है कुछ | उन्होंने बड़ी कृपा की कि चीन चले गए, तिब्बय चले गए, बर्मा चले गए, बाई चले गए और जाकर उन्होंने बीज आरोपित कर दिए। फिर उनके बीजों से आज फिर बोज लौटने की संभावना बन सकती है । लेकिन यह हो सकता था कि उस समय वे भी भिक्षु, जो भागे इस मुल्क से, कायर मालूम पड़े होंगे । लड़ना था यहाँ, जाना कहाँ था ? लेकिन जिनके पास कुछ है, वह लड़ने से ज्यादा उसको बचाने की फिक्र करेंगे । बुद्ध जिस वृक्ष के नीचे बैठे और 'बोषि' को प्राप्त हुए, वह मूल वृक्ष नष्ट हो गया। अशोक ने लंका भेज दी थी। वह लंका में सुरक्षित है। शाखा वापस आ गई है। मूल वृक्ष नष्ट हो गया । नष्ट किया ही गया होगा क्योंकि जब बौद्धों के पैर उखड़ गए तो सब नष्ट कर दिया गया । आप हैरान होंगे जान कर कि बुद्ध का जो मन्दिर है उसका पुजारी ब्राह्मण है। वह बौद्ध नहीं है । वह सम्पत्ति भी एक ब्राह्मण पुजारी की है— मन्दिर और उसकी व्यवस्था भी । वह सब नष्ट हो गया। लेकिन अशोक के द्वारा भेजी गई उस वृक्ष की एक शाखा लंका में पल्लवित हो गई । और उस शाखा की एक शाखा लाकर फिर हम जगा सके। उस वृक्ष का एक बच्चा मौजूद है । यह वृक्ष की चर्चा मैंने इसलिए की कि प्रतीक की तरह ख्याल में आ जाए। लेकिन उसकी एक शाखा अब उस वृक्ष की एक ● तिब्बत में फिर वह हालत आ गई-तिब्बत चीन के हाथ में जाएगा और कम्युनिज्म जितनी जोर से दुनिया से रहस्य विज्ञान को खत्म कर सकता है उतना कोई चीज खत्म नहीं कर सकती। जो भी आन्तरिक सत्य है और उनके मो
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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