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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-४ १२७ कहा कि सिर्फ इतना ही ख्याल रखना कि जब तुम रब्बी को किताब दो तो रब्बी क्या कहते हैं, क्या करते हैं, उसे जरा ध्यान से देख लेना। तुम्हें कुछ करने की जरूरत नहीं। तुम सिर्फ नोट कर लाना कि उन्होंने क्या कहा, क्या किया, गुस्से में आए, नाराज हुए, किताब फेंको, कैसा चेहरा था, सब खबर ने माना। वह आदमी गया, उसने किताब दी। उसने कहा कि यह फला-फला फकीर ने किताब दी है। रब्बी ने किताब को तो देखा भी नहीं। हाथ में उठाकर दरवाजे के बाहर फेंक दिया और कहा कि भागो यहाँ से । इस तरह की किताबों को छना भी अधर्म और पाप है। रब्बी की औरत पास में बैठी थी। उसने कहा ऐसा क्यों करते हैं। फेंकना ही हो तो वह आदमी चला जाए तो पीछे फेंक सकते हैं। और फिर इतनी हजारों किताबें घर में हैं, एक कोने में. उसको भी रख दें। न पढ़ना हो, न पढ़ें। लेकिन ऐसा क्यों करते हैं ? पर रबी आग-बबूला हो गया, लाल हो गया। उस आदमी ने नमस्कार किया, वापर आया। उस फकीर ने पूछा-क्या हुआ ? कहा कि ऐसा-ऐसा हुआ। रब्बी बड़ा खतरनाक है। उसकी पत्नी बहुत भली है। रब्बी ने किताब बाहर फेंक दी और कहा कि हटो यहाँ से, भाग जाओ यहाँ से वह आग हो गया एकदम । उस फकीर ने पूछा उसकी पत्नी ने जिसको तुम बहुत भली कहते हो क्या किया ? उसने कहा कि किताब को उठा लाओ। उसने नौकर से किताब मंगवा ली और कहा घर में इतनी किताबें हैं, यह भी रखी रहेगी, ऐसा भी क्या ? और फेंकना हो तो पीछे फेंक देना। लेकिन सामने ऐसा क्यों करते हो? तो उस फकीर ने कहा कि रम्बी से अपना कभी मैल हो सकता है । लेकिन उसकी पत्नी से कभी नहीं। 'रब्बी' से अपना मेल हो ही जाएगा। रबी को किताब पढ़नी ही पड़ेगी। वह किताब पढ़ेगा ही। मगर उसकी पत्नी कभी नहीं पढ़ेगी। तब उस आदमी ने पूछा-आप तो उल्टी बात कर रहे हैं। रब्बी बड़ा नाराज था, एकदम आगबबूला हो गया था। फकीर ने कहा वह नाराज हुआ था तो थोड़ी देर में नाराजगी शिथिल होगी; नाराज कोई कितनी देर रहेगा और जब कोई आग में चढ़ जाता है ऊपर तो वापस उसे शांति में लोटना पड़ता है। जब कोई श्रम करता है तब उसे विश्राम करना पड़ता है। जब कोई जागता है उसे सोना पड़ता है। उल्टा जाना ही पड़ता है। रब्बी कितनी देर क्रोध में रहेगा ? माखिर डिग्री नीचे आएगी। शांत होगा; किताब उठाकर लाकर पढ़ेगा। लेकिन उसकी पत्नी ? उससे कोई नाशा नहीं। क्योंकि उसकी कोई डिग्री नहीं । क्रोष में नहीं गई तो क्षमा में भी नहीं लौटेगी। उसने चीजों को जिस तटस्थता
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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