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________________ १२६ महावीर : मेरी दृष्टि में जा रहे है क्योंकि जहां हम हैं वहीं हम ऊब जाते हैं, वहां हम बोरडम से भर जाते हैं । और जिससे हम ऊब गए हैं उससे उल्टे की तरफ हम जाते हैं । जैसे पूरब भौतिक की तरफ जाएगा क्योंकि वह अध्यात्म से ऊब गया है और पश्चिम अध्यात्म की तरफ आएगा क्योंकि वह भौतिकवाद से ऊब गया है । पश्चिम में इस समय जो चिन्तना है कि क्या है अध्यात्म में, कैसे हम आध्यात्मिक हो जाएं और पूरब की जो कामना है पूरी की पूरी कि कैसे हम वैज्ञानिक हो जाएँ, कैसे धन आए, कैसे समृद्धि आए, कैसे अच्छे मकान, कैसे अच्छी मशीन । पूरब का व्यक्तित्व भौतिकवाद की तरफ जा रहा है। पश्चिम का व्यक्तित्व अध्यात्म की तरफ आ रहा है । व्यक्ति में भी वही होता है, समाज में भी वही होता है, राष्ट्र में भी वही होता है । 'अति' - दूसरी 'अति' हमें पकड़ लेती है । । महावीर कहते हैं कि दोनों 'अतियों' में हम बहुत घूम चुके हैं; दोनों विरोधों में हम बहुत बार घूम चुके हैं । बया कभी हम जागेंगे और उस जगह खड़े हो जाएँगे, जहाँ कोई 'अति' नहीं है, कोई विरोध नहीं है, कोई द्वन्द्व नहीं है । इस स्थिति का नाम वीतरागता है । और यह सभी में है । ध्यान रखिए यह सभी में है । जैसे एक आदमी क्रोध कर रहा है । क्रोध करके आपने कभी ख्याल किया है कि क्रोध करने के बाद आप क्या करते हैं ? आप पछतावा करते हैं । ऐसा आदमी खोजना कठिन हैं, जो क्रोध के बाद पछतावा न करता हो । और अगर मिल जाए तो अद्भुत है क्रोध करके आदमी पछताता है । पछतावा दूसरी "अति' है । क्रोध किया कि पछतावा आया । पछतावे के वक्त आदमी सोचता है कि हम बड़े भले आदमी हैं देखो ! हमने क्रोध कर लिया और हम पछतावा भी कर रहे हैं । क्रोध किया कि क्षमा पीछे आई । विपरीत आता रहेगा सारे जीवन के सब तलों पर । यह कभी आपने ख्याल किया कि जिसको आप प्रेम करेंगे उसके प्रति उसकी घृणा इकट्ठी होने लगती है । फ्रायड ने पहली दफा इस तथ्य की तरफ सूचना दी कि जिसको आप प्रेम करते हैं, उसके प्रति आपकी घृणा इकट्ठी होने लगती है । क्योंकि प्रेम तो आप कर लेते हैं । जब प्रेम से ऊबने लगते हैं तब करेंगे क्या ? और जिस व्यक्ति से आप घृणा करते हैं पूरी, बहुत सम्भावना है कि उसके प्रति आपका प्रेम इकट्ठा होने लगे । एक यहूदी फकीर था । उसने एक किताब लिखी और किताब बड़ी क्रांतिकारी थी । यहूदियों का जो सबसे बड़ा धर्मगुरु था, जो रब्बी था उसके पास उसने वह किताब अपने एक मित्र के हाथ भेंट भेजी कि जाकर रब्बी को मेरी किताब भेंट कर आयो । और उस बहूदी फकीर ने वह बगावती फकीर था
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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