SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ महावीर : मेरी वृष्टि में में जो संन्यासी है, उसने पिछले जन्म में संन्यासी होने का अर्जन किया होगा । ऐसा मामला नहीं है । इस जन्म में जो विरागी है, वह पिछले जन्म में राग के चक्कर में घूमता रहा है। यह फिक्र न करें कि हमें क्या होना है, रागी कि विगी । फिक्र इसकी करें कि हम जो भी हों, उसमें हम जागें । हम कुछ होने की चिन्ता छोड़ दें। वह जो जागना है, वीतरागता में ले जाएगा । और वह वीतरागता बिल्कुल ही भिन्न बात है । इसी सन्दर्भ में यह भी, जैसा कि मैंने जातिस्मररण की बात की, पिछले जन्म के स्मरण की - महावीर की बड़ी बेनों में एक देन है। ये उस तरह की ध्यान-पद्धतियां हैं जिनसे व्यक्ति अपने पिछले जन्मों में उतर जाए। और अगर एक व्यक्ति अपने पिछले जन्मों में उतर जाए और दो चार जन्म भी जान ले तो बहुत हैरान हो जाए। फिर वही वह आदमी नहीं हो सकता जो अभी था क्योंकि वह पाएगा कि यह सब तो मैं बहुत बार कर चुका; इससे उल्टा भी कर चुका मगर कुछ भी नहीं पाया। हर बार जैसे चाक के स्पोक घूम कर फिर अपनी जगह पर आ जाते हैं, ऐसे हो मैं घूमा और अपनी जगह पर आ गया । कई बार लगा चाक को कि ऊपर पहुँच गया हूँ लेकिन जब उसे लग रहा था कि ऊपर पहुँच रहा हूँ तभी नीचे आना शुरू हो गया था। कई बार चाक को air बिल्कुल गिर गया हूँ नरक में तभी ऊपर चढ़ना शुरू हो गया । बहुत बार स्वर्ग छुआ, बहुत बार नरक छुआ; बहुत बार सुख छुआ, बहुत बार दुख छुआ; बहुत बार राग छुआ, बहुत बार विराग छुआ । सब द्वन्द्वों में चक्र घूम चुका है । अगर दस-पांच जीवन स्मरण आ जाएं तो यह सब इतनी बार हो चुका है। कि अब इसमें चुनाव का कोई मतलब नहीं है । : जातिस्मरण का मतलब यही है कि यह द्वन्द्व हम बहुत बार भोग चुके हैं, इन दोनों से हम जाग सके हैं। इन दोनों में चुनाव का कोई उपाय नहीं है । लेकिन, मन का नियम यह है कि जो वह करता है उससे उल्टे को चुनता है । इसलिए संन्यासियों के पास रागियों की भीड़ होती है। जो वह चुनता है, अभी कर रहा है, उसके अनकॉन्शस में, अचेतन में उल्टे का इकट्ठा होना शुरू हो जाता है। जब वह सेक्स में होता है, तब उसको ब्रह्मचर्य की बातें स्थाल में आती है । और जब वह ब्रह्मचर्य साधता है तो सेक्स की बातें ध्यान में आती हैं; जब वह भोजन कर रहा होता है तब वह सोचता है भोजन त्याग कैसे करूं और जब वह भोजन त्याग करता है, तब भोजन का इतनी अद्भुत है हमारे द्वन्द्व में घूमने की व्यवस्था । स्मरण आने लगता है । और हम एक बार एक ही
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy