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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-४ . . १२३ कर रहे हो । नरक में सड़ोगे। वह कर रहा है, धमका रहा है। लेकिन भीतर उसके कामना वही है। मुझे बड़े-से-बड़े साध मिलते हैं जो सामने आत्मा-परमात्मा की बात करते हैं। एकान्त में सिवाय सेक्स के दूसरी बात ही उनके चित्त में नहीं होती। और बड़े घबड़ाते हैं कैसे इससे छुटकारा हो और कहते हैं कि बस यही घेरे हुए है । चौबीस घंटे परमात्मा की और मोक्ष की चर्चा चल रही है। लेकिन भीतर वासना का दौर चल रहा है पूरे वक्त। और यह हो सकता है कि मधुशाला, वेश्या के घर में बैठा हुआ एक आदमी कई बार संन्यासी हो जाता है मन में कि छोड़ो सब बेकार है। उल्टा खींचता रहता है। रागी विरागी हो जाता है और विरागी रागी हो जाता है। जो इस जन्म में रागी है, अगले जन्म में विरागी हो जाए; जो इस जन्म में विरागी है वह अगले जन्म में रागी हो जाए। यह जानकर मैं बहुत हैरान हुआ हूँ। इधर कुछ बहुत से गहरे प्रयोगों ने कुछ अजीब से नतीजे दिए हैं जो चौंकाने वाले हैं। जैसे कि एक आदमी है जो. बिल्कुल ही राग-रंग में पड़ा हुआ है, उसके पिछले जन्म में उतरने की कोशिश करो तो तुम दंग रह जाओगे कि वह संन्यासी रह चुका है। और संन्यासी रहते वक्त उसने इतना विरोध पाल लिया है संन्यासी होने से कि यह जन्म उसका रागी का हो गया है । एक स्त्री मेरे पास आती थी और उसे बड़ा आतुरता थी कि किसी तरह पिछले जन्म में वह उतर जाए। मैंने उससे बहुत कहा कि यह आतुरता छोड़ दो क्योंकि इसमें कठिनाइयां पड़ सकती हैं। उसको बड़ा समी-साध्वी होने का ख्याल था। और उसे उसका इतना भाव पकड़ा कि मुझे शा ही था कि पिछले जन्म में वन वेश्या रह चुकी होनी चाहिए । नहीं तो इतने जोर से सती-साध्वी होने का भाव नहीं पकड़ता है । वह जिससे ऊब गई है, वह ना जन्म को शुरूआत बन जाती है। फिर भी वह नहीं मानो । मैंने कहा कि ठीक है, तू प्रयोग कर। वह छः महीने तक पिछले जीवन में उतरने का, जातिस्मरण का प्रयोग करती रही । एक दिन आकर एकदम चिल्लाने-रोने लगी कि मुझे किसी तरह भुलाओ क्योंकि मैं दक्खिन के किसी मन्दिर में देवदासी थी, वेश्या थी। और मैं इसको भूलना चाहती हूँ। मैं इसे याद ही नही करना चाहती कि ऐसा कभी हुआ। मैंने कहा जो याद आ गया उसको भूलना मुश्किल है। इसलिए प्रकृति ने सारी व्यवस्था की है कि पिछला जन्म आपको याद न आए क्योंकि पिछले जन्म में आप निरन्तर रूप से उल्टे रहे होंगे। आम तौर से लोग सोचते हैं इस जन्म
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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