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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में कुछ जीवन्त परम्पराएं हैं जिनमें कि वह चलता है । जैसे कि तिब्बत का लामा है, दलाई लामा है। बड़ी अद्भुत बात है लेकिन बड़ी कीमत की है । जब एक दलाई लामा मरता है, तो वह सब चिन्ह छोड़ जाता है कि मेरा अगला १०८ जन्म जो होगा उसमें तुम मुझे कैसे पहचान सकोगे ? है । मेरा अगला जन्म होगा तो ये मेरे चिन्ह होंगे । वह सारे चिन्ह छोड़ जाता और ये सवाल तुम मुझसे पूछना तो ये जबाब मैं तुम्हें दूंगा । तब तुम पक्का मान लेना कि मैं वही आदमी हूँ । नहीं तो तुम पहचानोगे कैसे, मानोगे कैसे कि मैं वही है जो पिछला दलाई लामा मरा था। जो अभी दलाई लामा है इसका पहला गुरु जब मरा यह वही आत्मा है । वह चिन्ह छोड़कर गया था कि पूरे तिब्बत में खोज बीन करना इतने वर्षो बाद | और जो लड़का इन चीजों का यह जवाब दे दे, समझना कि वह मैं हूँ । बातें अत्यन्त गुप्त थीं। वे सील बन्द मोहर उत्तर हैं उनके । वह कोई खबर किसी को नहीं मिल सकती । सारे तिब्बत में खोज शुरू हुई । और सारे तिब्बत में सैकड़ों, हजारों बच्चों से पूछे गए वही सवाल | लेकिन कोई बच्चा कैसे जवाब देता ? इस बच्चे ने सारे जवाब दे दिए तो स्वीकृत कर लिया गया कि पुरानी आत्मा उसमें उतर आई है । तब उसको फिर गद्दी पर बिठा दिया गया । सिर्फ शरीर नया हो गया, आत्मा वही है । शिक्षक यह भी करते रहे ताकि वे अनन्त जन्मों तक निरंतर उपयोगी हो सकें । जब खो जाएं वे जन्मों से तब भी वे उपयोगी हो सकें । एक जन्म से ज्यादा तो नहीं हो सकता यह । लेकिन जन्म बन्द हो जाने के बाद बहुत समय तक सम्बन्ध स्थापित रह सकते हैं । सम्बन्ध स्थापित रहने के दो सूत्र रहेंगे। उस शिक्षक की करुणा को वासना शेष रह गई हो जितनी दूर तक, और जितने दूर तक उससे सम्बन्ध होने के सूत्र साफ और स्मरण में रह गए हों । इसीलिए जैसा मैंने कल कहा कि कई वर्षों तक तो जरूरत नहीं पड़ती है लिखने की कि क्या कहा था क्योंकि बारंबार सम्बन्ध स्थापित करके जांच की जा सकती है कि यही कहा था। लेकिन जब वे सूत्र क्षीण होने लगते हैं और सम्बन्ध स्थापित करना मुश्किल होने लगता है तब लिखने की बारी आती है । इसलिए पुराना कोई भी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सैकड़ों वर्षों तक नहीं लिखा गया क्योंकि तब तक वे सूत्र थे जिससे कि सम्बन्ध जोड़ कर हम पूछ सकते थे, जान सकते थे कि यही कहा है। लिखने की कोई जरूरत न थी । लेकिन जब सम्बन्ध क्षीण होने लगे और अन्तिम शिक्षक मरने लगे जिनका सम्बन्ध हो सकता था तो फिर उनसे कहा कि अब लिख दिया जाए। अब पूरी बात लिख
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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