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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-४ १०७ समझ लें कि एक पिता है, उसके छोटे छोटे बच्चे हैं और वह लम्बी यात्रा पर जा रहा है, जहां से वह कभी नहीं लौटेगा। वह अपने बच्चों के लिए इन्तजाम कर जाता है सब तरह का। उन्हें कह जाता है कि इस पते पर चिट्ठी लिखना तो मुझे मिल जाएगी। वह घर में अपना चित्र भी छोड़ जाता है कि जब तुम बड़े हो जाओ तो तुम पहचानना कि मैं ऐसा था। वह उन बच्चों के लिए स्मृति भी छोड़ जाता है कि तुम जब बड़े हो जाओ तो मैं तुमसे कहना चाहता था, वह इसमें लिखा है, वह तुम समझ लेना। और जब भी मुझसे सम्बन्ध स्थापित करना चाहो तो यह मेरा फोन नम्बर होगा। इस विशेष फोन नम्बर पर तुम मुझसे सम्पर्क स्थापित कर सकोगे। मैं नहीं लौट सकूँगा अब । अब लौटना असम्भव है। तो प्रत्येक करुणापूर्ण शिक्षक एक बार लौटकर सारा इन्तजाम कर जाता है कि पीछे उससे कैसे सम्बन्ध स्थापित किए जा सकेंगे। जब शरीर खो जाएगा तो उसका कोड नम्बर क्या होगा, जिस विशेष मनःस्थिति में, जिस विशेष कोड नम्बर पर उससे सम्पर्क स्थापित हो जाएगा। सारे धर्मों के विशेष मंत्र कोड नम्बर हैं। जिन मन्त्रों में निरन्तर उच्चारण से ध्यानपूर्वक चित्त एक विशिष्ट ट्यूनिंग को उपलब्ध होता है और उस यूनिग में विशिष्ट शिक्षकों से सम्बन्ध स्थापित हो सकते हैं। वह बिल्कुल टेलिफोनिक नम्बर है कि चित्त अगर उसी ध्वनि में अपने को गतिमान करे तो एक विशिष्ट ट्यूनिय को उपलब्ध हो जाता है। और वह कोड नम्बर किसी एक शिक्षक का ही है, वह दूसरे के लिए काम में नहीं आ सकता। दूसरे के लिए वह उपयोगी नहीं है । इसलिए इन कोड नम्बरों को प्रत्यन्त गुप्त रखने की व्यवस्था की गई है। इसलिए चुपचाप अत्यन्त गुप्तता में ही वे किए जाते हैं । सम्बन्ध स्थापित हो सके इसलिए बहुत उपाय छोड़ जाते हैं; चिन्ह छोड़ जाते हैं; मूतियां छोड़ जाते हैं; शब्द छोड़ जाते हैं। मंत्र छोड़ जाते हैं; विशेष आकृतियाँ जिनको तंत्र कहें वह छोड़ जाते हैं, यंत्र छोड़ जाते हैं । जिम आकृतियों पर चित्त एकाग्र करने से विशिष्ट दशा उपलब्ध होगी उस दशा में उनसे संबंध स्थापित हो सकेगा। लेकिन वह सब खो जाता है । और, धीरे-धीरे उनसे सम्पर्क स्थापित होना बन्द होता चला जाता है। जब उनसे पूरा सम्पर्क टूट जाता है तब उनके पास कोई उपाय नहीं रह जाता। तब वैसे शिक्षक धीरे-धीरे खो जाते है, विलीन हो जाते हैं। ऐसे अनन्त शिक्षक मनुष्य जाति में पैदा हुए हैं। सभी शिक्षकों का अपना काम था वह उन्होंने पूरा किया और पूरी मेहनत भी की है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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