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________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- ४ १०६. दी जाए। जैसा कि सिक्खों के मामले में हुआ । दसवें गुरु के बाद कोई व्यक्ति नजर नहीं आया जो कि ग्यारहवां गुरु हो सकेगा । जरूरी हुआ कि ग्रन्थ लिख दिया जाए क्योंकि अब सम्भावना नहीं है कि सम्पर्क हो सकेगा । बाकी दुसगुरुओं की जो परम्परा है उसमें निरन्तर सम्पर्क स्थापित है। वह नामक से टूटती नहीं है । उसमें कोई कठिनाई नहीं पड़ती है। नानक निरन्तर उपलब्ध हैं: सम्बन्ध जोड़ा जा सकता है । यद्दों पर बिठाने की जो बात थी वह धीरे-धीरे पीछे तो बड़ी स्वार्थ की बात हो गई । मगर वही अर्थ की थी। बहुत अर्थ की थी । लेकिन हम सभी अर्थ की बातों को व्यर्थ कर सकते हैं । 1 अब जैसे कि शंकराचार्य की गद्दो पर जो शंकराचार्य बैठे हैं उन्हें कुछ भी पता नहीं; कुछ भी मतलब नहीं । अब उनका गद्दो पर बैठना बिल्कुल राजनीतिक चुनाव जैसा मामला है । लेकिन प्राथमिक रूप से शंकराचार्य अपनी जगह उस आदमी को बिठाल गया है, जिससे वह सम्बन्ध स्थापित रख सकेगा । और कोई मतलब नहीं है उसका । अपनी जगह उस आदमी को बिठाल दिया जा रहा है जिससे कि अब वह सम्बन्ध स्थापित रख सके । मर कर भी वह मरेगा नहीं इस जगत् में । उसका एक सम्बन्ध सूत्र कायम रहेगा । एक व्यक्ति मौजूद रहेगा जिससे वह काम जारी रखेगा । और उस व्यक्ति को वह कह कर जाएगा, समझ कर जाएगा कि वह कैसे व्यक्ति को चुन कर बिठा जाएगा ताकि इस व्यक्ति के खो जाने पर भी सम्बन्ध सूत्र जारी रहे । और, वह सम्बन्ध सूत्र खत्म हो गए । अब शंकराचार्य से किसी शंकराचार्य को कोई सम्बन्ध सूत्र नहीं है । सम्पर्क टूट गया है । इसलिए अब सब फिजूल बात हो गई । अब उसमें कोई मूल्य नहीं रह गया । अब वह मामला सिर्फ धन-सम्पत्ति, पद-प्रतिष्ठा का है कि कौन आदमी बैठे । तो झगड़े हैं, अदालत में मुकंदमें भी चलते हैं, और सब निर्णय अदालत करती है कि कौन आदमी हकदार है । यह निर्णय करने की बात ही नहीं है । यह प्रश्न ही नहीं है निर्णय करने का क्योंकि निर्णय कौन करेगा ? यह निर्णय पुराना शिक्षक कर सकता था, पिछला शिक्षक कर सकता था और तब कई बार ऐसा हुआ है कि बिल्कुल ऐसे लोगों के हाथ में गद्दी सौंप दी गई है जिनके बाबत किसी को कोई ख्याल हो नहीं था । एक शिक्षक मर रहा था चीन में। पांच सौ उसके भिक्षु थे। उसने खबर भेजी की जो भिक्षु चार पंक्तियों में मेरे दरवाजे पर आकर लिख जाए धर्म का सार उसको मैं अपनी गद्दो पर बिठा जाऊंगा क्योंकि मेरा वक्त विदा का आ गया है; अब मैं जाता हूँ। तो पाँच सौ थे भिक्षु । बड़े ज्ञानी पण्डित थे उनमें । ,
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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