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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-४ शरीर उपलब्ध करने में असमर्थ थी तो. उसने मखली गोसाल के शरीर का उपयोग किया। और इसीलिए इस व्यक्ति का, जो अभी नया व्यक्ति बना, पुराने शरीर में मखली गोसाल के, महावीर से कोई मेल नहीं हो सका । यहु एक बिल्कुल स्वतन्त्र चेतना थी जिसका अलग अपना काम था और अपना काम किया उसने । इसलिए मखली गोसाल भी तीर्थकर होने का एक दावेदार था। उस युग में अकेले महावीर या बुद्ध हो नहीं थे, मसली गोसाल था, अजितकेरा कम्बल था, संजय वेलट्ठिपुत्त था, प्रवर कात्यायन था, पूर्ण काश्यप थाये सबके सब तीर्थकर की हैसियत के लोग थे। लेकिन सब अलग-अलग परम्पराओं के तीर्थकर थे। उनमें से सिर्फ दो को परम्पराएं पीछे शेष रह गई, एक महावोर को, एक बुद्ध की। बाको सब परम्पराएं खो गई। एक रास्ता तो यह है कि वैसा व्यक्ति प्रतीक्षा करे असमय में किसी के शरीर छूट जाने की और उसमें प्रवेश कर जाए। एक यह उपाय है जिसका कई बार प्रयोग किया गया है । दूसरा उपाय यह है कि वह व्यक्ति अशरीर ही रहकर थोड़े से सम्बन्ध स्थापित करे और अपनी करुणा का उपयोग करे । उसका भी उपयोग किया गया है । कुछ चेतनाओं ने अशरीर हालत से संदेश भेजे हैं, सम्बन्ध स्थापित किए हैं। ___ और जो कल बात छूट गई थी वह यह कि मूर्तियों का सबसे पहला प्रयोग पूजा के लिए नहीं किया गया है। उसका तो पूरा विज्ञान है। मूर्ति का सबसे पहला प्रयोग अशरीरी आत्माओं से सम्पर्क स्थापित करने के लिए किया गया है। जैसे महावीर को मूर्ति है । इस मूर्ति पर अगर कोई बहुत देर तक चित्त एकाग्र करे और फिर आंख बंद कर ले तो मूर्ति का निगेटिव आँख में रह जाएगा। जैसे कि हम दरवाजे पर बहुत देर तक देखते रहें और आंख बंद कर लें तो दरवाजे का एक निगेटिव, जैसा कि कैमरे को फिल्म पर जाता है, आँख पर रह जाएगा। उस निगेटिव पर भी अगर ध्यान केन्द्रित किया जाय तो उसके बहुत गहरे परिणाम हैं। महावीर की मूर्ति, बुद्ध की मूर्ति का जो पहला प्रयोग है, वह उन लोगों ने किया है जो अशरीर आत्माओं से सम्बन्ध स्थापित करना चाहते है। महावीर की मूर्ति पर अगर ध्यान एकाग्र किया और फिर आँख बंद कर ली और निरन्तर अभ्यास से निगेटिव स्पष्ट बनने लगा तो वह जो निगेटिव है, महावीर की अशरीरी आत्मा से सम्बन्धित होने का मार्ग बन जाता है और उस द्वार से अशरीरी आत्माएं भी सम्बन्ध स्थापित कर सकती हैं। यह अनन्त काल तक हो सकता है, इसमें कोई बाधा नहीं है । तो मूर्ति, पूजा के लिए नहीं है, एक डिवाइस है, बड़ी गहरो रिवाइस जिसके माध्यम से, जिनके शरीर खो गए हैं
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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