SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० महावीर : मेरी दृष्टि में दूसरा रूप ले सकती है लेकिन लोट नहीं सकती है। और यह भी समझ लेना उचित है जैसा कि मैंने कहा कि साइकिल चलाते वक्त पैडल बन्द हो जाए; जिस दिन वासना क्षीण हो गई उस दिन पैडल चलना बन्द हो गए। लेकिन, चाक थोड़ी दूर और चल जाएंगे, अपनी हो मर्जी से। अगर वह व्यक्ति साइकिल से नीचे उतर जाना चाहे तो उसे कोई रोकने वाला नहीं है। वह अपनी ही मर्जी से अब भी बैठा हुआ है। पैडल चलाना बंद कर दिया है; वासना क्षीण हो गई है। लेकिन अब भी देह के वाहन का वह उपयोग करता है थोड़ी दूर तक । लकिन ऐसा भी हो सकता है कि अब देह के वाहन को चलाने की कोई शक्ति शेष ही न बची हो । अक्सर इसलिए ऐसा हो जाता है कि इस तरह की आत्माओं का दूसरे जन्मों का जीवन अति क्षीण होता है। शंकराचार्य जैसे व्यक्ति जो तीग-पैंतीस साल ही जी पाते हैं, इसका कोई और कारण नहीं है । वेग बहुत कम है । अक्सर इस तरह की आत्माओं का जीवन अत्यल्प होता है। जैसे जीसस क्राइस्ट है-अत्यल्प जीवन मालूम होता है। यह जो अत्यल्प जीवन है वह इसी कारण है। और कोई कारण नहीं। वेग ही इतना है। अपनी ही मर्जी से लोट सकते हैं, न लौटना चाहे तो कोई लौटाने वाला नहीं है। लेकिन लौटना चाहें तो अगर शक्ति शेष है तो ही लौट सकते हैं। फिर मैंने कहा कि करुणा से कोई नहीं रोक सकता है। शरीर नहीं उपलब्ध होगा। तब दोहरी बातें हो सकती हैं। या तो वैसा व्यक्ति किसी दूसरे के शरीर का उपयोग करे जैसा कि मखली गोसाल ने किया। यह बात भी महावीर के सन्दर्भ में है, इसलिए समझ लेना उचित है। कहानियां कहती हैं-मखली मोसाल बहुत वर्षों तक महावीर के साथ रहा। फिर उसने साथ छोड़ दिया। फिर वह महावीर के विरोध में स्वतन्त्र विचारक की हैसियत से खड़ा हुआ । लेकिन जब महावीर ने शिष्यों को कहा कि मखली गोसाल तो मेरा शिष्य रह चुका है, मेरे साथ रहा है तो उसने स्पष्ट इन्कार किया। उसने कहा वह मखली गोसाल जो आपके साथ था मर चुका है । यह तो में एक बिल्कुल हो दूसरी मात्मा हूँ, उसके शरीर का उपयोग कर रहा हूँ। मैं बह व्यक्ति नहीं हूँ । साधारणतया महावीर के अनुयायी समझते रहे हैं कि यह मूठा है । पर यह झूठा नहीं है । यह बात बिल्कुल ही सच है। मखली गोसाल नाम का जो व्यक्ति महावीर के साथ रहा था, वह अतिसाधारण व्यक्ति था। किन्हीं कारणों से असमय में उसकी मृत्यु हुई और उसको देह का उपयोग दूसरी स्वतन्त्र चेतना ने किया जो तीवंकर को ही हैसीयत की थी। लेकिन अपना
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy