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प्रश्न : यदि तीर्थंकर पहले जन्म में ही कृतकृत्य हो चुके हैं और केवल करणावश संसार में आते हैं तो फिर वे केवल एक ही बार क्यों आते हैं ? बारम्बार क्यों नहीं आते ? इस प्रकार तो उन्हें अब भी संसार में ही होना चाहिए था । और जो वे करणावश आते हैं सो क्या अपनी इच्छा से आते हैं या उनका यह आना स्वाभाविक होता है ?
उत्तर : यह बात बहुत महत्त्वपूर्ण है मेरी दृष्टि में। जिसके जीवन का कार्य पूरा हो चुका है वह ज्यादा से ज्यादा एक ही बार वापिस लौट सकता है। वापिस लौटने का कारण है जैसे कोई आदमी साइकिल चलाता हो, पैडल चलाना बन्द करदे तो पिछले वेग से साइकिल थोड़ो देर बिना पैडल चलाए आगे जा सकती है। लेकिन बहुत देर तक नहीं। इसी तरह जब एक व्यक्ति का जीवनकार्य पूरा हो चुका है तो उसके अनेक जीवन की वासनाओं ने जो वेग दिया है, गति दी है वह ज्यादा से ज्यादा उसे एक बार और लौटने का अवसर दे सकती है। इससे ज्यादा नहीं। जैसे पैडल बन्द कर दिए हैं तो भी साइकिल थोड़ी दूर तक चलती जा सकती है लेकिन बहुत दूर तक नहीं। और यह भिन्न-भिन्न समय की अवधि होगी क्योंकि पिछले जीवन की कितनी गति और कितनी शक्ति चलाने की शेष रह गई है, प्रत्येक का अलग-अलग होगा। इसलिए बहुत बार ऐसा हो सकता है कि कोई करुणा से लौटना चाहे और न लौट सके।
दूसरा प्रश्न भी विचारणीय है। क्या , तीर्थकर अपनी मर्जी से लौटते हैं ? हां, लौटते तो वे अपनी मर्जी से हैं लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि सिर्फ मर्जी से ही लोटें। अगर थोड़ी शक्ति शेष रह गई है तो मर्जी सार्थक हो जाएगी। अगर शक्ति शेष नहीं रह गई है तो मर्जी निरर्थक हो जाएगी। उस स्थिति में करुणा