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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में और जो शरीर ग्रहण नहीं कर सकते हैं, उनमें एक खिड़की खोली जा सकती है, उनसे एक सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। फिर रास्ता यह है कि अशरीरी आत्माओं से कोई सम्बन्ध खोजा जा सके । अशरीरी आत्माएं भी सम्बन्ध खोजने की कोशिश करती हैं । करुणा फिर यह मार्ग ले सकती है और आज भी जगत् में ऐसी चेतनाएँ हैं जो इन मार्गों का उपयोग कर रही हैं। पियोसॉफी का सारा का सारा जो विकास हुआ है वह अशरीरी मात्माओं के द्वारा भेजे गए संदेशों पर निर्भर है। थियोसॉफी का पूरा केन्द्र इस जगत् में पहली बार बहुत व्यवस्थित रूप से ब्लावेट्स्की अल्काट, ऐनीबीसेन्ट, लीडबीटर इन चार लोगों की पहली दफा अशरीरी आत्माओं से संदेश उपलब्ध करने की अद्भुत चेष्टा पर आधारित है। और जो संदेश उपलब्ध हुए हैं, वे बहुत हैरानी के हैं। संदेश कभी भी उपलब्ध हो सकते हैं। क्योकि अशरीरी चेतना कभी भी नहीं खोती । लेकिन शरीरी आत्मा तब तक आसानी से उस अशरीरी चेतना से सम्बन्ध स्थापित कर लेगी जब तक करुणावश वह भी सम्बन्ध स्थापित करने को उत्सुक है। धीरे-धीरे करुणा भी क्षीण हो जाती है। करणा अन्तिम वासना है। जब सब वासनाएं शोण हो जाती हैं, करुणा ही सिर्फ रह जाती है। लेकिन अन्त में करुणा भी क्षीण हो जाती है । इसलिए पुराने शिक्षक धीरे-धीरे खो जाते हैं। करुणा भी जब क्षीण हो जाती है तब उनसे सम्बन्ध स्थापित करना अति कठिन हो जाता है। उनकी करुणा शेष रहे तब तक सम्बन्ध स्थापित करना सरल है। क्योंकि वे भी आतुर थे । जब उनकी करुणा क्षीण हो गई, अन्तिम वासना गिर गई तब फिर सम्बन्ध स्थापित करना निरन्तर कठिन होता चला जाता है । जैसे कुछ शिक्षकों से अब सम्बन्ध स्थापित करना करीब-करीब कठिन हो गया हैं। महावीर से सम्बन्ध स्थापित करना अब भी सम्भव है । लेकिन उसके पहले के तेईस तीथंकरों में से किसी से भी सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सकता और इसलिए महावीर कीमती हो गए और तेईस एकदम से गैर कीमती हो गए। इसका बुनियादी कारण यह है कि अब उन तेईस तीथंकरों से कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सकता है, किसी तरह का भी। प्रश्न : इसका अर्थ यह हुमा कि ये जो मोम के बारे में कहा जाता है, मात्मा चली गई है और सारे जगत् में लीन हो गई है, फिर उस आत्मा से कैसे सम्बन्ध स्थापित हो ? ' ... उत्तर : इसको थोड़ा समझना पड़ेगा-इसे थोड़ा समझना पड़ेगा। मैं पूरी बात कह लू फिर आप समझ जाएंगे। तेईस तीर्थकर एकदम गैर ऐतिहासिक हो
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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