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महावीर का जीवन सदेश
और तपस्या अगर पाप को हटाने में समर्थ न हो, तो मनुष्य को कभी पुण्य
के मार्ग का सेवन करना ही नही चाहिए ।
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कहते है कि गोरखपुर जिले मे काशिया के पास पुप्पोर नाम का जो गाँव है, वही महावीर का वास्तविक निर्वाण धाम है । वेशक पावापुरी की अपेक्षा पुप्पोर नाम ही पापपुर से अधिक मिलना-जुलता है। कैर्निघम प्रोर राहुल साकृत्यायन भले ही सिद्ध करते रहे कि पुप्पोर ही असली स्थान है । लेकिन अगर जैनो की श्रद्धा उसे वहाँ से घमीटकर पावापुरी मे लाई हो, तो वैमा करने का उसे अधिकार है । हम तो इतिहास को खोद खोदकर देखने वाली दृष्टि की अपेक्षा भक्तो की श्रद्धा का ही अधिक ग्रादर करेगे ।
और हमने लगभग बीस वर्ष पहले यह स्थान देखा था । इसलिए, अव तो मन-ही-मन हमारा यह निश्चय बंध चुका है कि अपापपुर दूसरा हो नही
सकता ।
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रास्ते की एक वडी सर्पाकृति मोड पार करके हम जल-मन्दिर के महाद्वार के पास जा पहुँचे । दूमरे तीर्थ स्थानो मे जैसी एक तरह की धवराहट होती है, वैसी यहाँ नही हुई यहाँ सब कुछ शान्त और प्रसन्न था । नया महाद्वार और उस पर बना हुआ नक्कारखाना, जो श्रव तक पूरा नही हुया है, जल-मन्दिर तक बना हुआा चौडा पुल सव कुछ एक खास किस्म के लाल पत्थर से पटा हुआ है। पुल के दोनो तरफ वगीचे है और तालाव के अन्दर कमल के पत्तं, सारे तालाव को ढक देना उचित होगा या नही, इसके निश्चय में सहज भाव से डोल रहे है । नीचे घाट के
सामने वाला मन्दिर
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पुल से ठीक समकोण मे नही है, यह विशेषता तुरन्त ध्यान खीचती है । इसलिए कुछ अटपटा-सा लगता है । 'परन्तु, अन्त मे मन मे यही निर्णय होता है कि इसमें भी एक प्रकार की विशेष सुन्दरता है ।
पानी की तरह पैसा खर्च करके स्थापत्य कला की मिट्टी पलीद करने का आरोप मैने ग्राजकल के जैनो पर किया है । परन्तु पावापुरी का जलमन्दिर एक प्रह्लाददायक अपवाद है ।
यहाँ आने के बाद भला अमृतसर का स्वर्ण मन्दिर याद प्राये बिना कुछ छोटा है, दूसरे वह है
कैसे रह मकता ? पर ग्रमृतसर का तालाव एक तो मनुष्य की वस्ती के बीच श्रौर तीसरे उसमे कमल स्वर्ण - मन्दिर मे कबूतरो का उपद्रव आध्यात्मिक शान्ति का नाश करता है ।
नही है । इसके अतिरिक्त