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महावीर का जीवन सदेश
आपकी सस्कृति उसमे आडे नही आयेगे । ऐसे धर्म दुनिया के सब लोगो का स्वागत करते है, सबको निमन्त्रण देते है । ऐसे धर्मो मे मुख्य तीन है - (1) बौद्ध धर्म (2) ईसाई धर्म और (3) इस्लाम ।
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बौद्ध धर्म वास्तव मे हिन्दू धर्म मे सुधार करने को प्रवृत्त हुआ था । परन्तु उस धर्म मे वश-निष्ठा नही किन्तु विशिष्ट प्रकार की जीवन-निष्ठा सर्वोपरि हुई । प्रथम वह धर्म भारत मे सब जगह फैला । हिन्दू धर्म के कर्मकाण्ड से और ऊच-नीच भाव से ऊवे हुए लोगो को वौद्ध-विचार से नई प्रेरणा मिली। पुराने धर्म के श्रभिमानी और ठेकेदार लोगो ने वौद्ध धर्म का जबरदस्त विरोध किया, इसके इतिहास में यहाँ नही उतरूंगा । मै इतना ही कहूँगा कि इस बौद्ध धर्म का हिन्दुस्तान के बाहर सतत स्वागत हुआ है । वौद्धप्रचारक पैदल हिमालय लाघ कर तिब्बत, चीन, मंगोलिया आदि देशो मे पहुँचे । जिस धर्म से, जिम उपदेश से और जिम जीवन-दृष्टि से अपना कल्याण हुआ वह समस्त मानव जाति को अगर हम न दे तो स्वार्थी कहलायेगे । जीवन का रहस्य और जीवन के उद्धार का मार्ग यही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान है । इसका प्रचार यदि न करेंगे तो 'वह मानवता का और सच्चे ज्ञान का द्रोह ही होगा' इस भावना से बौद्ध प्रचारक एशिया मे सर्वत्र फैल गये । एक ओर लका, दूसरीओर ब्रह्मदेश और उत्तर में तिब्बत से जापान तक का सारा एशिया खण्ड, सारे को वे बौद्ध धर्म के प्रभाव मे लाये और अज्ञान में सड़ने वाले लोगो को उन्होने रत्नत्रयी की भेंट की ।
यही प्रभाव आप एक ईश्वर भक्त यहूदी के पुरुपार्थ मे देखेंगे । जैसे एक हिन्दू गौतम बुद्ध ने कल्याण मार्ग का प्रचार किया उसी प्रकार ईसा ने यहूदियों को अपना धर्म परिपूर्ण करने की आवश्यकता समझाई। और, ईसा के शिष्य ने धर्मवीर को शोभा दे इस प्रकार बहादुरी से ईसाई सघ की स्थापना की । उनका वह उत्साह लगभग दो हजार वर्ष हुए, अभी कम नही हुआ है । वे यूरोप मे फैले, अमेरिका को अपना बनाया, एशिया और अफ्रिका मे उनके प्रयत्न अखण्ड चालू ही है!--
मानवी प्रयत्नो मे गुण-दोष साथ-साथ प्रायेगे ही। पवित्र हेतु मे भी अपवित्रता दाखिल हो जायेगी । कल्याण की प्रेरणा से किये हुए कुछ कामो मे कल्याण के फल भो बटोरने होगे । परन्तु हमे कुल विचार कर मनुप्यजात वढी है या नही, ऊर्ध्वगामी हुई है या ग्रधोगामी, यही देखना है ।