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क्या जैन समाज धर्मतेज दिखायेगा ?
जैन लोगो से मेरा सम्बन्ध इतना पुराना है और उन्होने मुझे इस प्रकार अपनाया है कि यहाँ आते मुझे पराया जैसा लगता ही नही ।
मै जन्म से जैन नही हूँ, सनातनी ब्राह्मण हूँ । परन्तु ब्राह्मण का आदर्श मुझे हमारी स्मृतियो मे से मिला उससे कही अधिक बौद्ध और जैन ग्रन्थो मे सच्चे ब्राह्मण की जो व्याख्या दी है उसमे से मिला है ।
'ब्रह्म जानाति ब्राह्मण ' यह तो बहुत बडा आदर्श हुआ । सनातनी कहते है जिसके माँ-बाप ब्राह्मण है वह ब्राह्मण है । सनातनियो को अपना हिन्दू धर्म वश-परम्परा से मिला है ।
दुनिया मे जो बडे-बडे धर्म है उनके मुख्य दो विभाग होते है ।
(1) वश-परम्परा का ।
ऐसे धर्म गुण-कर्म का अनुशीलन करते है सही, परन्तु अपने धर्म-समाज मे किसी और को दाखिल होने के लिये निमत्रण नही देते । और, यदि कोई दाखिल होना चाहे तो उसका शायद ही स्वीकार होता है । मैं मानता हूँ कि इस प्रकार के मुख्य धर्मं तीन है - ( 1 ) हमारा सनातन हिन्दू धर्म (2) पारसियो का जरथुस्त्री धर्म और (3) यहूदी धर्म । सब यहूदी एक ही वश के होते है क्या, इस बारे मे मेरे पास सही जानकारी नही है । परन्तु मे मानता हूँ कि यहूदी धर्म वश-परम्परा प्राप्त ही होता है ।
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(अभी-अभी एक पुरुषार्थी सौराष्ट्री गुजराती ने पजाव जाकर आर्यसमाज की स्थापना की और उसने सनातनी हिन्दू धर्म का रूप बदलने का प्रयत्न किया। आर्यसमाज मे किसी भी देश का, किसी भी वश का मनुष्य दाखिल हो सकता है, मात्र श्रमुक शर्तों का स्वीकार करना काफी होगा । )
(2) धर्मो का दूसरा विभाग है - प्रचार-परायण धर्म । श्रमुक सिद्धान्त का स्वीकार कीजिये, अमुक जीवन-क्रम पसन्द कीजिये और अमुक धर्मसस्थापक को मान्य रखिये, अमुक ग्रन्थो के प्रामाण्य को स्वीकार कीजिये, तब आप उस धर्म मे प्रवेश कर सकते है । फिर तो आपका वश, ग्रापका देश या