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________________ क्या जैन समाज धर्मतेज दिखायेगा? 187 प्रचार-परायण तीमग धर्म इनाम है। हजरत मोहम्मद पैगम्बर साहव ने अरबस्तान की हालत देनी । उमका बहुत चिन्नन किया। उन्हें ईश्वरी प्रेरणा हुई। उन्हें शिप्य भी अच्छे मिले। और, उम धर्म का प्रचार पूर्व और पश्चिम दानो तरफ हुना। योगेप मे स्पेन तप उम धर्म का अमर पहुंचा था। तुकिम्तान, ईरान, मध्य एगिया वगंग प्रदेशो में वह धर्म फैला । प्रवास-कम से वह भारत में भी पाया। यहां हिन्दू धर्म में उमका मघर्ष हुमा । हम यह न मान बैठे कि उस धर्म ने पठान और मुगल गजमत्ता के जोगे यहां अपना पैर जमाया। हिन्दू सम्कृति में पिछड़े लोग, की अत्यन्त उपेक्षा थी। पवित्रता के अपने प्रादर्ण जिसे मान्य न हो उसके बारे म हिन्दू नोग नफरत की भावना रखते है, उगका वहिष्कार करते है और उसे तिरस्कृत दशा में रखते है । यह अधार्मिक वृत्ति तो है ही लेकिन उसमे भी अमाद्य बात यह है कि कोई मनुष्य अपने चारित्य में और जीवन-नम में ऊँचा उठना चाहना हो तो जान-पांत में मानने वाले हिन्दू अगुना हीन मानी जाने वाली जाति को ऊँचा उठने नहीं देते। हिन्दू के मन मे हीनता भी म्वधम होने मे रक्षणपाय यी । इम घोर अन्याय के विरुद्व मन्तो ने बार-बार आवाज उठाई, परन्तु अन्याय का जबरदस्त प्रतिकार न किया । इमलिये यदि अपना उद्वार चाहते है तो धर्मान्तर करना ही होगा, ऐसी परिस्थिति हमने देश में दाखिल की। मागे मानव-जाति को अपने धर्म का लाभ पहुंचाने के प्रयत्न में एक वडा दोप घुम गया और वह है मघ वढाने की लालसा । मुसलमान और ईमाई लोग के बीच सघर्प चला, उन्ह ने अनेक युद्ध किये जिन्हे Wars between the Cross and the Crescent के तौर पर पहचाना जाता है। ऐसा है दुनिया के धर्मों का इतिहास । इममे जैन धर्म कहाँ बैठता है, इसका उत्कट चिन्नन होना जरूरी है। भगवान् महावीर का जैन धर्म वशनिष्ठ नही है। विशिष्ट जीवनदृष्टि और जीवनक्रम मानव-जाति के लिये अत्यन्त कल्याणकारी है ऐसा देख कर उन्होने प्रचार शुरू किया। ऐसे मुधार-धर्म मे जात-पात का भेद और उच्च-नीच का पाखण्ड हो ही नहीं सकता।
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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