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________________ 180 महावीर का जीवन सदेश जा सकी है और हमारे देश के अधिकाश लोग समानता की नई कल्पना से अब भी अकुलाते है। हमे इस नई समानता का स्वरूप स्पष्ट समझ लेना चाहिये । सदाचारी और दुराचारी, देशभक्त और देशद्रोही, पुण्यात्मा और आतताई, धनवान और दरिद्र, ज्ञानी और अजानी, अपना और पराया सभी अपने ही भाई-वन्धु है। मुझे यह समझना चाहिये कि मेरे पूर्वजो के पुण्य-प्रताप से जिस तरह मैं मगर होता हूँ और अपनी भूनो मे शर्माता हूँ, उसी तरह तमाम मानव जाति के समस्त व्यक्तियो के चारित्र में अयवा उसके अभाव मे मेरा हिस्सा है, काफी हिम्सा है । भोली, दवी हुई और पिछडी हुई जातियो के दोपो के लिये उनको सजा मिले उमके बजाय मुझ ज्यादा सजा मिलनी चाहिये, क्योकि वे अपने दोपो के बारे मे जागृत नही है, और, मै इन दोषो के बारे मे जागृत होने पर भी मैने उनके हाथो ये दोप होने दिये और पाइन्दा भी मुझे इन दोपो का भान रहने वाला है, अत मुझे उनके हाथ से होते रहते इन दोपो को यकायक जवरदस्ती रोकना नहीं है, लेकिन वन्धु-भाव से उनकी सेवा करके उनमे यह भाव जागृत करना है। एक ही मिसाल लें। मुझे इस बात का भान हुआ कि पशु-पक्षी या मछलियों को मार कर खाना पाप है और मैने वह पाहार छोड दिया । इतना करने मे मै अपने आपको निप्पाप नही मानूंगा । मेरे कुनवे वाले अगर मासाहार करते है तो जिस तरह मुझे महसूस होता है कि इसमे मेरा भी थोडा दोप हे, उमी तरह अधिकाश मानव-जाति मासाहार करती है तो मुझे समझना चाहिये कि इम पाप मे में भी शामिल हूँ। यह समझने के साथ अगर मै मासाहारियो से नफरत करूं या कानून के जरिये उनको मासाहार करते रोकू तो वह मेरे लिये ठीक न होगा। इस बात को स्वीकार करके कि मानव-जाति इतनी आगे नहीं वढी है, मुझे चाहिये कि मै धीरज रखू। मासाहारी लोगो से द्वेष या उनसे तिरस्कार तो मै कभी न करूं, उनको पापी भी न समझू', उनसे दूर भी न रहूँ। लेकिन उनके प्रसग मे आकर प्रेम और सेवा के जरिये उनको अपनाऊँ और विश्वास रखू कि इतनी अनुकूलता के वाद आहिस्ता-आहिस्ता वे मासाहार-त्याग के सिद्धान्त को जरूर समझ जायेगे। हमारे पूर्वजो ने इस धीरज को श्रद्धा नाम दिया है । और, श्रद्धा ही धार्मिकता की मुख्य निशानी है । मासाहार का पूरा-पूरा त्याग
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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