________________
181
महामानव का साक्षात्कार
करने पर भी मासाहारी लोगो को अपनाने मे मुझे थोडा भी सकोच न होना चाहिये ।
अपनी दुकान 'काम करते जैन कारकुनो को और जैन चपरासियो को जैन मालिक जिस तरह जाति की दृष्टि से अपना भाई मानता है और कोई भेद नही मानता, उसी तरह अपने घर मे नौकरी करने वाले तमाम नौकरी के लिये मनुष्य के रूप मे हमारे मन मे आत्मीयता होनी चाहिये ।
भारत के वासिंदो के बारे मे विचार करते वक्त और उनके नागरिकत्व को स्वीकारते वक्त वह हिन्दू है या मुसलमान, पारसी है या क्रिश्चन, उनके रिश्तेदार पाकिस्तान मे रहते है या हिन्दुस्तान मे, ऐसा भेद मन मे नही श्राना चाहिये । अपने देश मे वास करने वाले सब मेरे देश वन्धु है, इस बात को स्वीकारने मे मन मे कोई भी अन्तराय न होना चाहिये और जब हमारे हृदय मे महामानव का साक्षात्कार होगा तब हमारे मन मे जो इज्जत सरदार वल्लभभाई पटेल के लिये है वही इज्जत विन्स्टन चर्चिल के लिये भी रहेगी । भारत अगर पुण्य भूमि है तो इजिप्ट, इटली, जर्मनी और इ गलैण्ड भी हमारे लिये पुण्यभूमि ही है । हरेक भूमि पर किसी-न-किसी मानव महात्मा ने पुण्यकार्य किये ही हैं । अगर गंगा नदी पवित्र है तो नील या कोगो, व्हाईन या व्होलगा, मी सुरी - मी सीसीपी श्रोर हो- हाग हो, ऐरावती और सीतावाका, सभी नदियाँ पवित्र है । क्योकि इन सब नदियो ने माता होकर मानव-जाति का पोषण किया है । किसी भी देश में किमी भी आदमी के प्रति अन्याय होता हो तो वह मेरे भाई के प्रति ही होता है, ऐसी भावना मेरे मन मे पैदा होनी चाहिये | मेरे भाइयो मे से अगर कोई मेरे पास खड़ा है और उसको कोई मारता हो तो मै बीच मे पहूंगा, मेरा और एक भाई कलकत्ता या श्रीनगर मे हा और उसे कोई मारता हो तो वहाँ उसे बचाने के लिये तुरन्त चाहे जा न सकूँ लेकिन यथासम्भव इलाज किये वगैर न रहूँ और कुछ भी न कर सकूं तो कमसे-कम यह हरगिज न कहूँ कि वह मेरा भाई नही है । दुनिया के तमाम लोगो के प्रति मेरी ऐसी ही भावना होनी चाहिये ।
मेरा दान का प्रवाह अपने कुनबे के प्रति या अपने जाति- भाइयो के प्रति ही नही, बल्कि आसपास के मभी मानवो के प्रति वहना चाहिये और उस