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महामानव का साक्षात्कार
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अपनी आन्तरिक शक्ति निहित है उस पर ही अनन्य आधार रखना चाहिये ।
और, उसके आधार पर ही मनुष्य की सिर्फ व्यक्ति की ही नही बल्कि समस्त मानव-समाज की उन्नति होने वाली है, ऐसी श्रद्धा रखकर उस शिव-शक्ति का अनुभव करना चाहिये। गांधीजी ने उम शिव-शक्ति का नाम सत्याग्रह रखा है। उन्हें ने कहा कि सत्य अपनी आन्तरिक शक्ति से ही बलवान है। बाह्य शक्ति द्वारा उसकी (मत्य की) मदद करने से वह अपमानित और कमजोर होता है। ( Truth is humiliated and weakened when backed by mere physical and brute forcc ) 1
जिसको इस महान् मिद्वान्त का अनुभव हुआ है उमे ही महामानव का साक्षात्कार होगा । जव तक मानव-जाति का हृदय सकुचित था, उमका अनुभव भी एकदेशीय था, तब तक मनुप्य को महामाराव का साक्षात्कार नही हुया । यूनान के लोगो ने अपने आपको ही सस्कारी, पूर्णमानव मानकर अन्य लोगो को जगली (Barbarians) कहा और यह मिद्वान्त जारी किया कि कुदरत ने ही उनको गुलाम होने के लिये पैदा किया है। (अाज भी चन्द मानव जातियां मानती है कि आत्मा तो मनुष्य को ही हो सकती है । पशु-पक्षी आदि जलचर, खेचर तमाम मनुष्येतर प्राणियो को प्रात्मा है ही नहीं। अत ग्रीक लोगो के प्रति हंसने की जरूरत नहीं है ।) प्रार्य लोगो ने भी अपने आपको श्रेष्ठ मानकर अनार्यों को हीन ममझा। यहां तक कि मर्यादा पुरुपोत्तम रामचन्द्र जी ने भी माना कि जो न्याय पार्यो के लिए लागू था वह शूर्पणखा, वालिके शवूक जैसो के लिये लागू नहीं हो सकता । आज गोरे लोग भी मानते है कि सभ्यता का विरसा हमारा ही है, रगीन प्रजा पिछड़ी हुई है उसके लिये स्वराज्य या स्वातन्त्र्य नही है। हालाकि वह मोह और मद अब ठीकठीक उतरा है, कम हुआ है।
अपने यहां तो हमने चार वर्ण और असख्य जातियो की सीढी बनाकर मानवता को करीब-करीव मिटा दिया। यहां तक कि न्याय-मन्दिर मे भी सव के लिये एक सरीखा न्याय नही। एक ही गुनाह के लिये ब्राह्मण को अलग सजा, क्षत्रिय और वैश्य के लिये अलग सजा, शूद्रो के लिये भयानक सजाये रखी और चण्डालो को सजा करते-करते हम खुद ही अन्याय करने लगे।
अब हम उस पुरातन पाप मे से मुक्त होना चाहते हैं । अब हम मानव मात्र की समानता कबूल करने लगे है। हाँ, पुरानी रूढि अव तक मिटाई नहीं