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धर्म - भावना का मवाल
धर्म नहीं है । अब मामाहार-त्याग का श्रादर्श दुनिया के सामने रखते चन्द वाते मोचनी चाहिये | दुनिया को सुधरी हुयो सब सरकारें हर बात के प्रांकडे इकट्ठा करती हैं और जागतिक सम्यायें उनका अध्ययन करती है । इसलिये अव मोचना होगा कि मनुष्य जाति में खाने को माग बागे मुंहे कितने हैंयानी मनुष्य मख्या कितनी है ? माय गाथ यह भी सोचना पड़ेगा कि दुनिया मे गेहूँ, चानन गारु, फन यदि ग्राय परार्थ तिन पैदा होते हैं ? गर धान्याहार, फलाहार और शाकाहार में उतनी लोक-मख्या को हम जिन्दा नही रख मरते हैं तो नाहार को मदर मे ग्रण्टे खाने की उजाजत दे सकते हैं " मनुष्य के जैन नाम लेने वाले पशु-पक्षियों को मभयदान देकर जलचर मछलियों को खाने की इजाजत दे सकते हैं "
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ये दोनो सुझाव या पर्याय हमारे या हमारे जमाने के र प्रगति करने की इच्छा रखने वाले नोगा ने ये मन्जिने मोची है ।
हिना
नहीं है ।
बीच को
हमारे देश मे गौरा का प्रादर्श भी उसी वृत्ति से स्थापित हुग्रा है । जानपरा को तो नही मारना और हल चनाने में, गाडी या
ये गाय-चैन को नोनि-धर्म के
पशुयों को मार कर खायें तो भी गाय जैम चाहिये, क्योंकि उनमे हमे दूब मिनना है। कोण खीचने मे वैन की मेना जरूरी है। अन्दर लाना चाहिये, यानि उन्हे अपने कुटुम्बी समजकर उनकी रक्षा श्रीर उनका पालन करना चाहिये । हिन्दू धर्म कहना है कि गो-रक्षा धर्म अगर मनुष्य को जँच गया तो वहां से हृदय के विकास का प्रारम्भ हुया । फिर तो प्रादमी धीरे-धीरे मव प्राणियों के प्रति ग्रहिमावृत्ति बढाता जायगा ।
श्रव आहार का मवान लेकर मनुष्य जाति को बताना होगा कि मामाहार के त्याग को कैसे मफन करें। उसके रास्ते दो है । या तो ग्रन्नोत्पत्ति हम जोरो मे बढाये या मनुष्य की प्रजोत्पत्ति का कुछ नियन्त्रण करें, या दोनो उपाय एक साथ चलायें ।
मामाहार त्याग का प्रचार करने वाले को इस रचनात्मक प्रवृत्ति से प्रारम्भ करना होगा और जब तक श्राहार और लोक संख्या के मवाल को हल नही किया, मामाहार त्याग का श्रादर्श मनुष्य जाति के सामने अन्तिम श्रादर्श के रूप मे रखते हुये भी मामाहारी लोगो के प्रति धैर्य के साथ सद्भाव रखना होगा।