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________________ 170 महावीर का जीवन सदेश मामाहार ताममी है, मासाहार से मनुष्य क्रूर होता है, ऐसी बातो का प्रचार करने के पहले इस दिशा मे भी पूरा सशोधन करना चाहिये । केवल व्यक्तियो के जीवन मे भी देखा जाय तो मासाहारी लोगो मे न्यायनिष्ठ, दयाधर्मी, कारुणिक लोग भी पाये जाते है और इससे उलटा क्रूर, कठोर, कपटी, श्रन्याई लोग भी पाये जाने है । धान्याहारी लोगो मे भी वैसा ही है । मासाहारी- समाज और धान्याहारी समाज की व्यापक तुलना करने पर भी ऐसा ही पाया जाता है | धान्याहारी लोग अधिक दयावान न्यायनिष्ठ, नि स्वार्थी और विश्ववात्सल्य के उपासक है, ऐसा नही पाया गया । विपय सेवन के वारे मे भी अनुभव ऐसा ही है । भर्तृहरि ने उदाहरण दिया ही है कि हाथी और वन-वराह का मास खानेवाला सिंह साल भर मे किसी एक ही समय रति-सुख लेता है और कीडे भी नही खाने वाला कबूतर हर हमेशा रति-सुख मे ही फसा हुआ रहता है | हमे तो एक ही बात सोचनी है । प्राणी की हत्या करने मे पाप है और प्राणियो को मारने का मनुष्य को अधिकार नही है । ये बाते दुनिया के सामने हम सौम्यता से रखते जाये और ऊपर बताये हुये दो सवालो का हल ढूँढते जाये । राम वनवास मे शिकार करते थे और सीता मास पकाकर उनको खिलाती थी, यह बात हम लोगो के सामने रोज-रोज रखने की कोशिश न करे | लेकिन अगर किसी ने रामायण के श्लोक उद्धृत करके यह बात हमारे सामने रखी तो हम उसके ऊपर चिढ भी न जायें । हम इतना ही कह सकते है कि हम रामचन्द्र जी से वचननिष्ठा, प्रजानिष्ठा, पितृभक्ति आदि बाते सीख सकते हे | हमारे आहार का धर्म उनके पास से हमने सीखने का नही सोचा है, अथवा, हम यह भी कह सकते है कि ऐतिहासिक राम अपूर्ण हो सकते है अथवा, उनके जमाने के आदर्श के अनुसार पूर्ण होते हुये भी आज के हमारे आदर्श के अनुसार अपूर्ण हैं । जिन की हम पूजा और उपासना करते है वे राम तो प्रत्यक्ष भगवान् है । उनकी जीवन लीला तो एक रूपक ही है । महात्मा गाँधी ने अपनी युवावस्था मे मास खाया । उसका वयान उन्होने स्वय किया है । इस पर से उनका माहात्म्य कम नही होता और हम यह भी सिद्ध करने की कोशिश नही करते कि उन्होने जो खाया सो मास नही था किन्तु खुमी (भूछत्र) था । चन्द लोग मास और माष का साम्य लेकर कहते है जहाँ मासाहार की बात श्राती है वहाँ माष यानि उडद का अर्थ
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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