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________________ 152 महावीर का जीवन संदेश ( 2 ) वनस्पति- सृष्टि का और प्राणसृष्टि का उपयोग करते अगर कुछ नुकसान होता है, रोग होते है, बाधाये पहुँचती हैं, खनरे उठाने पडते है तो अपनी बुद्धि चलाकर इन सब चीजा का और प्राणियों का उपभोग निरावाध वन सके इसका इलाज भी ढूंढना । (4) और, इस तरह से वनस्पति और प्राणि सृष्टि पर अधिकार जमने के बाद उनसे जो लाभ होता है वह सारी की सारी मनुष्य जाति को मिल सके इसलिये आवश्यक वैज्ञानिक सशोधन करना, सगठन बढाने की शक्ति बढाना और अधिक-से-अधिक लोगों को अधिक-से-अधिक लाभ असानी से मिल सके ऐसी व्यवस्था काम मे लाना इन चार पुस्पार्थो मे मूल विचार है स्वामित्व प्राप्त करके उपभोग करने का । हिंसा का प्रस्थान विलकुन इसके विपरीत होगा । इसलिये हमारी फिजिकल लॅबोरेटरी मे वैज्ञानिक प्रयोगशाला मे, एनिमल हसबैडरी मे - पशु सवर्धन मे हमारी दृष्टि ही अलग होगी। हम कहेंगे कि वनस्पति, पशु-पक्षी आदि मनुष्येतर जीवसृष्टि को जीने का स्वतन्त्र अधिकार है । न हम उनके मालिक है, न उन पर हमारा कोई अधिकार है । बात सही है कि इनके बिना हम जी नही सकते, लेकिन इन्हे मारने का, इन्हे लूटने का, इनके परिश्रम से लाभ उठाने का हमे कोई नैतिक अधिकार नही है । इसलिये यह सारी स्वार्थी प्रवृत्ति घटाने की हमारी कोशिश होनी चाहिये । अहिंसा और मानवता की दृष्टि से हमे एक ऐसा म बाँधना होगा, जिसके द्वारा अपने जीवन मे हम हिसा को उत्तरोत्तर कम करते जाय । ग्राज गाय, बैल, भैंसे यादि बडे-बड़े जानवरो को अभयदान दिया, कल बकरे, मेढे, दुवे, हिरण श्रादि छोटे जानवर को मारना छोड दिया, परसो मासाहार मे मछलियाँ और अडे के बाहर मासाहार न करने का नियम बनाया, आगे जाकर प्राणी के शरीर से उत्पन्न होने वाले दूध घी आदि स्वाभाविक आहार की मदद लेकर धान्य, फल, सब्जी, कदमूल आदि अनाहार से सतोप माना, उसके बाद हिम्मत पूर्वक दूध आदि पदाथ अडेक जैसे ही त्याग मानकर उनके बिना चलाने की कोशिशे करना और दूध, घी आदि मासाहार के प्रतीको की जगह वनस्पति मे से हम क्या-क्या पैदा कर सकते है इसके प्रयोग करना, यह होगी हमारी हिंसावृत्ति की शोध खोज । अगर दूध देने वाली गाय पवित्र है, तो शहद देने वाली मधुमक्खी भी उतनी ही पवित्र है गौहत्या महापाप है तो शहद की मक्खियों को मारना,
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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