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स्याद्वाद की समन्वय शक्ति
आज के युग की मुख्य माँग है, समन्वय । मतभेदो प्रति हम आदरभाव रखते हैं । लेकिन हम चाहते है कि भिन्न मतावलवी लोग आपस मे लडे नही । केवल चर्चा से झगडो का अन्त नही आता । सत्य की प्रतीति चर्चा से नही, किन्तु हृदय से होनी चाहिये । बुद्धि के द्वारा सत्य का एकागी दर्शन हो सकता है । स्याद्वाद ने यही बात हमे सिखाई है ।
हृदय के द्वारा और जीवन के द्वारा सत्य का अनुभव करते मतभेद का स्वरूप और मतभेदो का कारण धीरे-धीरे समझ मे आने लगता है और भेद केश गौण बनते है ।
समन्वय का प्रयत्न कौन करे ? मैं मानता हूँ कि जो लोग स्याद्वाद का रहस्य समझते है, उन्ही का प्रथम कर्त्तव्य है कि दार्शनिक चर्चाये छोडकर हर एक वाद की भूमिका वे समझ ले और जीवन मे सघर्ष रूपी हिंसा टालकर सहयोग रूपी अहिसा का रास्ता खुला कर दे ।
मैं जापान तीन दर्फ गया हूँ । बौद्ध धर्म का पालन करने वाले लोगो सेलका में, ब्रह्मदेश मे, चीन और जापान मे मिला हूँ। मै मानता हूँ कि बौद्ध धर्म का यानी बौद्ध जीवन-साधना का रहस्य समन्वयकारी हृदय ही अधिक अच्छी तरह से समझ सकता है ।
एक दर्फ जापान से लौटते मैं श्री विनोबाजी से मिला था । मैंने कहा कि, "आपने और मैने वेदान्त दर्शन का अध्ययन किया है । गौडपादाचार्य ने पनी कारिका मे कहा है कि अद्वैतवादी की भूमिका इतनी ऊँची है कि वहाँ पर किसी से झगडा ही नही हो सकता। मैंने तो अद्वैत मे समन्वय ही देखा है । तार्किक द्वैत की बात मैं नही करता । जीवन के क्षेत्र मे श्रद्वैत की साधना समन्वय ही सिखाती है । इस समन्वय के द्वारा वेदान्त श्रोर बोद्धदर्शन एक-दूसरे के नजदीक आ सकते है ।"
श्री विनोबाजी ने कहा, "मेरा मन भी उसी दिशा मे काम कर रहा है । मैं बोधिगया मे एक समन्वय आश्रम की स्थापना करना चाहता हूँ ।"