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स्याद्वाद की समन्वय शक्ति
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श्री विनोवाजी के कहने मे मैंने इसी विषय पर सर्वोदय सम्मेलन मे एक व्याख्यान भी दिया श्रौर श्री विनोवा ने अपने व्याख्यान मे उस की पुष्टि की।
बुद्ध गया एशिया के लोगो को एकन करने वाला एक पवित्र स्थान है ।
मैंने तुरन्त देखा कि बौद्ध जीवन-साधना, जैन जीवन - साधना और वेदान्त को जीवन-साधना तीनो का उत्तम समन्वय हो सकता है। श्रोर, ऐसा समन्वय ही भक्ति के वायु मंडल में दुनिया का उद्धार कर सकता है । स्याद्वाद अथवा समन्वय ही अहिंसा का सर्व करयाणकारी साधन श्रथवा जार है । (हिंसा के समर्थ शस्त्र को शस्त्र न कह कर प्रोजार ही कहना चाहिये 1)
समन्वय के इम सर्व-समर्थ प्रोजार या साधन की मदद से सारे विश्व को हम एक परिवार बना सकते हैं । 'यन भवति विश्व एकनीडम् ।'
जैन मुनियो की परम्परा सामान्य नही है । उन मे जितनी रूढिनिष्ठा है, उतनी ही तत्त्व-निष्ठा भी है। श्रोर, तत्त्व-निष्ठा की विजय रुढि पर जब होगी, तभी जीवन मफन होता है । रुढि - निष्ठा, मरण की दीक्षा है । तत्त्व-निष्ठा जीवन और प्रगति को दीक्षा है ।
अव युग-धर्म कहता है कि तत्त्व-निष्ठा को समन्वय की दृष्टि से जीवन की ओर देखन चाहिये ।
मैं मानता हूँ कि युग-धर्म समन्वय को ही सफल बनायेगा ।